हिंदी दिवस पर अमित शाह के हिंदी को देश की भाषा बनाने के बाद से सियासत शुरु हो गई. दक्षिण के कई नेता हिंदी का विरोध करते नजर आए. हिंदी भले ही देश में सबसे ज्यादा और दुनिया में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा लोगों की जबान है फिर भी इसे लेकर आए दिन विरोध देखने के मिलता है. अब ऐसे में सवाल उठता है कि किया वाकई हिंदी के जरिए देश को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है? कहीं ये भाषा थोपने की कोशिश तो नहीं? हिंदी को राष्ट्रभाषा होना चाहिए या नहीं?