आर्थिक सवालों पर फेल हो चुकी या नए आर्थिक दर्शन की जगह पुराने को ही नया स्लोगन बनाकर अपना काम चला रही भारत की राजनीति को एक शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है. राजनीति का भगोड़ा सिस्टम. जिसके तहत हर दल हर नेता मूल सवालों से भाग रहा है. कोई सांप्रदायिकता से लड़ने के बजाए भागने लगता है,शहर में रंगाई पुताई को विकास बता कर उसके पोस्टर लगाने लगता है तो कोई बेरोज़गारी और ग़रीबी के सवालों से भागने के लिए सांप्रायिकता को गले लगाने लगता है. सब भाग रहे हैं लेकिन भागते भागते सब अंत में वहीं पहुंच गए हैं जहां से भागना शुरू किया था.