क्या भीमा कोरेगांव केस में कंप्यूटर में फर्जी सबूत डाल कर लोगों को फंसाया गया है? इस पर वाशिंगटन पोस्ट की खबर और नेशनल इंवेस्टिगेंटिंग एजेंसी के जवाब की बात करेंगे लेकिन उसके पहले संदर्भों को समझना जरूरी है. आप जानते हैं कि आपका फोन सिर्फ आपका नहीं है. अपने ही फोन के भीतर लोग पलायन कर रहे हैं, एक ऐप से दूसरे ऐप के बीच कि कोई उनकी बातचीत न पढ़े और न सुने. कभी व्हाट्सऐप में रहते हैं तो कभी वहां से भाग कर सिग्नल पर जाते हैं. इसी तरह बैंक के खाते में भी सेंधमारी पहले से आसान हुई है. हाल ही में बीजेपी के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल की विकास निधि से किसी ने चेक का डुप्लीकेट बना कर 89 लाख रुपये निकाल लिए. आम लोगों के साथ ऐसा रोज होता है. आए दिन आप सुनते रहते हैं कि ईमेल हैक हो गया. बहुत आसानी से आपके ईमेल में कोई प्रवेश कर सकता है और उस ईमेल से कुछ भी आपके सिस्टम में प्लांट कर सकता है, ऐसा ही भीमा कोरेगांव केस में रोना विल्सन के मामले में होने का दावा किया गया है. जिस ईमेल में आप इतना भरोसा करते हैं वही ईमेल आपको आतंकवादी बना सकता है. वैसे इसके लिए जरूरी नहीं कि सबूत हो हीं. आपका सरकार की नीतियों का विरोधी होना भी काफी हो सकता है.