ऐसे लोग तो हर जगह मिल जाएंगे जो लड़कियों को झांसा देते हैं। मगर यह कहना कि संगठित रूप से झांसा दिया जा रहा है इसका कोई ठोस प्रमाण तो होना ही चाहिए। ऐसे लोग भी मिल जाएंगे जो मुसलमान होकर गीता पढ़ने लगते हैं और हिन्दू होकर कुरान पढ़ने लगते हैं। क्या जांच के पूरी होने से पहले सिर्फ लड़की या किसी लड़के के बयान पर रांची जैसे शहर को बंद कर देना परिपक्व राजनीति है। लड़की के इंसाफ़ के सवाल को अपनी सियासत में बदल देना क्या उचित है?