यह बजट मनमोहन काल से किन मायनों में एक नया मोड़ लेता है और किन मायनों में उन्हीं रास्तों पर चलता नज़र आया। क्या जेटली या मोदी ने इस बजट के ज़रिये कोई नया या बड़ा आर्थिक आइडिया पेश किया जिसका इंतज़ार ढुलमुल चल रही भारतीय अर्थव्यवस्था को था। सीमाएं तो ज़ाहिर हैं, मगर उन्होंने संभावनाओं की नई लकीर क्या खींचीं।