अफज़ल गुरु को फांसी देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक जगह कहा है कि समाज की सामूहिक चेतना को संतुष्ट करने के लिए फांसी ज़रूरी है। अब हमें या आपको सोचना चाहिए कि ये सामूहिक चेतना कैसे बनती है। अगर अफज़ल गुरु और याकूब मेमन के बारे में सामूहिक चेतना है तो वो राजोआना, भुल्लर या राजीव गांधी के हत्यारों के बारे में अलग कैसे हो जाती है। जो भी है ऐसी तथाकथित सामूहिक चेतना हकीकत तो है ही।