कांग्रेस के अपने कई सहयोगियों- अपनी बेटी शर्मिष्ठा तक- के विचारों और सुझावों की अनदेखी कर प्रणब मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में शामिल होना मंज़ूर किया. उन्होंने कुछ देर पहले आरएएस के संस्थापक केशवराम बलिराम हेडगेवार की मूर्ति पर माल्यार्पण किया. उनकी विजिटर बुक पर लिखा कि वो देश के महान सपूत हैं. सवाल यही उठ रहा है कि क्या प्रणब मुखर्जी आरएसएस की वैचारिकता को एक तरह की मान्यता दे रहे हैं? प्रणब मुखर्जी अपनी वैचारिक उदारता के बावजूद अपने धर्मनिरपेक्ष विश्वासों के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में संघ के इस कार्यक्रम में उनकी शिरकत कई राजनीतिक सवाल उठा रही है.