आपातकाल की बरसी के आस पास जयप्रकाश नारायण अनिवार्य हो जाते हैं। उसके बाद वैकल्पि हो जाते हैं और फिर धीरे धीरे गौण। चुनाव आता है तो भ्रष्टाचार के प्रतीक बन जाते हैं और चुनाव चला जाता है कि तो उन्हें छोड़ सब भ्रष्टाचार के मामलों में बचाव करने में जुट जाते हैं।