कही ऐसा तो नहीं कि असम के एन आर सी को लेकर हमारी राजनीति भी वही कर रही है जो कश्मीर के मसले को लेकर करती रही है. कश्मीर का मसला जितना कश्मीर के लिए नही है उतना यह हिन्दी भाषी प्रदेशों में धारणा बनाने के काम आता है. ऐसा न हो कि असम के इस मसले को लेकर राजनीतिक दल हिन्दी प्रदेशों की जनता को भरमाने के लिए होड़ करने लगे. असम की जनता दिल्ली में होने वाली राजनीति को ग़ौर से देख रही है. वह समझ रही है और हैरान भी है कि इस मसले को लेकर वहां इतनी गरमाहट क्यों हैं. असम में कोई इस सूची को किसी के लिए हार या जीत के रूप में नही देखना चाहता. वो अपने राज्य के हित में एन आर सी को ज़रूरी समझते हैं और चाहते हैं कि जितना प्रमाणिक रूप से यह काम हो सकता है.