घर लौटे प्रवासी श्रमिकों की बदहाली की तस्वीर भी उनकी घर वापसी की तस्वीरों से अलग नहीं है. अपने गांव और अपनों के बीच पहुंचकर राहत मिलने की उम्मीद अब धीरे-धीरे दम तोड़ दी जा रही है. मई के शुरुआती हफ्ते में एक बेहद ही मार्मिक तस्वीर में घर लौट रहे श्रमिकों की तकलीफ पर देश का ध्यान खींचा था इस तस्वीर में एक मजदूर अपनी गर्भवती पत्नी और 2 साल की मासूम बेटी को हाथ से बनाई एक लकड़ी की गाड़ी में खींचता हुआ करीब 700 किलोमीटर पैदल हैदराबाद से बालाघाट तक पहुंच गया था. संकट भरे रास्ते को हिम्मत से पार करने वाले इस मजदूर की तकलीफ पर लौटने के बाद भी कम नहीं हुई है.