भारत के प्रधानमंत्री रात 8 बजे देश को संबोधित करने जा रहे हैं. 24 मार्च की तालाबंदी के बाद यह उनका देश का नाम तीसरा संबोधन होगा, टीवी के जरिए 'मन की बात' को अलग कर दें तो. लेकिन देस अपने आप से बात कर रहा है. जो मजदूर इस देश को बनाते हैं देस से आकर, 24 मार्च से ही अपने भीतर इस मुल्क से बात कर रहे हैं. कि इसके लिए अपना पसीना बहाया, खून बहाया. लेकिन लिया कुछ नहीं. लिया बहुत कम. इस देस ने उसे सड़क पर मारा-मारा छोड़ दिया. जहां वो कभी ट्रकों से कुचला जा रहा है, कभी ट्रेन से कुचला जा रहा है. कभी कर्ज लेकर ट्रक, टैंकर पर सवार इस तपती धूप में जाने के लिए मजबूर है. उस देस जाते मजदूर से कौन बात कर रहा है? क्या आज राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री उस मजदूर की बात करेंगे? उन्हें बात करनी चाहिए.