समाजसेवी बाबा आम्टे ने कुष्ठ रोगियों के लिये अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की. उनके बेटे प्रकाश आम्टे ने कहा कि एक दिन मेरे पिता ने एक कुष्ठ रोगी को रास्ते पर देखा, उसके शरीर पर काफी सारे घाव थे, लेकिन मेरे पिता उससे घबराये नहीं, वो उन्हें घर लेकर आए और उनकी सेवा की. जिसके बाद हमने 1949 में महारोगी सेवा शुरू की थी.