राजकुमार राव पिछले कुछ समय से ऐसी फिल्में कर रहे हैं जिनमें या तो उन्हें अपनी दुल्हन को हासिल करने के लिए काफी जुगत लगानी पड़ती है या फिर उनके हाथ से दुल्हन निकल ही जाती है. जिसकी मिसाल 'बहन होगी तेरी' और 'बरेली की बर्फी' रही हैं. उनकी अधिकतर फिल्में उत्तर प्रदेश आधारित भी हो रही हैं. ऐसा ही कुछ 'शादी में जरूर आना' के बारे में भी है. फिल्म में काफी कुछ चीजें दोहराई गई लगती हैं और ऐसा एहसास देती हैं कि हमने इस कहानी को कहीं देखा है. हालांकि रत्ना सिन्हा ने अच्छा कॉन्सेप्ट उठाया है लेकिन फिल्म बहुत ही खींची और ऊबाऊ लगने लगती हैं.