देश की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक अरावली एक बार फिर सियासी और पर्यावरणीय बहस के केंद्र में है. वजह है अरावली की नई परिभाषा और उससे जुड़ा 100 मीटर फॉर्मूला, जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.
अरावली मामले में सुप्रीम कोर्ट की बड़ी कार्रवाई – मुख्य बिंदु
केंद्र और राज्यों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली विवाद पर केंद्र सरकार और संबंधित राज्यों को नोटिस जारी किया.
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कुछ स्पष्टीकरण ज़रूरी हैं.
सीजेआई की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा:
कमेटी की रिपोर्ट और कोर्ट की टिप्पणियों को गलत समझा जा रहा है.
रिपोर्ट या कोर्ट के निर्देश लागू करने से पहले स्वतंत्र विशेषज्ञ की राय ली जाए.
यह तय करना ज़रूरी है कि क्या नई परिभाषा से संरचनात्मक विरोधाभास पैदा हो रहा है.
क्या इससे गैर-अरावली क्षेत्रों का दायरा बढ़ गया है, जिससे अनियमित खनन आसान हो गया?
अपने ही आदेश को स्थगित किया
सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी की सिफारिशें और नवंबर के अपने निष्कर्षों को फिलहाल स्थगित कर दिया. इन्हें अभी लागू नहीं किया जाएगा. अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी.
नई हाई-पावर्ड कमेटी का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरावली पहाड़ियों और श्रृंखलाओं की मल्टी-टेम्पोरल जांच एक हाई-पावर्ड कमेटी करेगी।
कमेटी में डोमेन एक्सपर्ट शामिल होंगे.
उद्देश्य: अरावली की संरचनात्मक और पारिस्थितिक अखंडता की रक्षा, जो थार रेगिस्तान को गंगा के मैदानों की ओर बढ़ने से रोकती है.
विवाद की जड़ क्या है?
पर्यावरण मंत्रालय की समिति ने सिफारिश की थी कि 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली माना जाए. सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया था. याचिकाकर्ता आर.पी. बलवान, हरियाणा के रिटायर्ड वन अधिकारी ने चेतावनी दी कि यह पैमाना अरावली के बड़े हिस्से को संरक्षण से बाहर कर देगा और खनन का रास्ता खोल देगा.
अरावली क्यों महत्वपूर्ण है?
गुजरात से दिल्ली तक फैली अरावली थार रेगिस्तान और उत्तरी मैदानों के बीच प्राकृतिक दीवार है. यह क्षेत्र पहले से ही प्रदूषण संकट से जूझ रहा है। खनन बढ़ने पर हालात और बिगड़ सकते हैं.
नए नियमों पर चिंता क्यों?
नई परिभाषा के मुताबिक-
अरावली हिल: कम से कम 100 मीटर ऊंची पहाड़ी.
अरावली रेंज: 500 मीटर के दायरे में कम से कम दो या अधिक पहाड़.
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे छोटी पहाड़ियों में खनन की मंजूरी मिल जाएगी, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान होगा.
क्यों है यह मामला अहम?
अरावली संरक्षण पर 1985 से चली आ रही गोद वर्मन और एमसी मेहता केस की विरासत दांव पर है. राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-NCR में विरोध प्रदर्शन जारी हैं. पर्यावरणविद इसे इकोलॉजिकल डिजास्टर बता रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार का दावा है कि संरक्षण बरकरार रहेगा.
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