एक ऐसा आंदोलन जिसकी जड़ें आजादी से पहले के उस दौर में छिपी हैं जब अंग्रेज अपने औद्योगिक फायदे के लिए हमारे देश के आदिवासियों को एक-दूसरे से अलग कर रहे थे। एक ऐसा आंदोलन जो झारखंड की पहचान और अस्तित्व से जुड़ा है, और जिसकी आग अब रेल की पटरियों तक पहुंच गई है। ये कोई साधारण मांग नहीं है, बल्कि एक समुदाय की सदियों पुरानी लड़ाई है, जिसके पीछे छिपी है एक गहरी साजिश। क्या ये लोग सिर्फ आरक्षण चाहते हैं, या इसके पीछे अपनी जमीन, अपनी पहचान और अपने अस्तित्व को बचाने की एक बड़ी जंग है? आइए, इस कहानी को विस्तार से समझते हैं।