बस्तर जैसी जगह से रिपोर्ट करना आसान नहीं. पत्रकार, पुलिस और नक्सल के बीच फंस जाता है. इस जंग के बीच पत्रकार के सामने चुनौती होती है कि वो आदिवासियों के साथ हो रहे ज़ुल्म की खबर भी रिपोर्ट करे. मगर सुरक्षा एजेंसियां को निशाने पर वो भी आ जाता है. पिछले दो साल में बस्तर में ऐसे कई पत्रकारों को जेल भेजा गया जो ऐसी ही कहानियां बाहर ला रहे थे. उन्हीं में से एक संतोष यादव जो 17 महीने बाद ज़मानत पर बाहर आये हैं, उनसे बात की हमारे सहयोगी हृदयेश जोशी ने.