इस फ़िल्म में निर्माता निर्देशक दिबाकर बनर्जी ने आज़ादी से पहले 1942 के कलकत्ता को स्क्रीन पर उतारने की कोशिश की है। फ़िल्म में अजीत यानी आनंद तिवारी अपने लापता पिता को ढूंढने की गुज़ारिश लेकर डिटेक्टिव ब्योमकेश के पास जाता है और फिर ब्योमकेश छानबीन कर एक बहुत बड़े षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश करता है।