'कसौटी जिंदगी की' के लिए 72 घंटे काम करती थीं श्वेता तिवारी, 30 दिन की शूटिंग के मिलते थे 45 दिनों का फीस

श्वेता ने अपनी मेहनत के पीछे की प्रेरणा का श्रेय एकता कपूर को दिया. उन्होंने बताया, एकता खुद पूरी शूटिंग के दौरान मौजूद रहती थीं. वह कभी सोती नहीं थीं, न ही उनकी टीम.

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'कसौटी जिंदगी की' के लिए 72 घंटे काम करती थीं श्वेता तिवारी
नई दिल्ली:

भारतीय टेलीविजन की चर्चा एकता कपूर के नाम के बिना नहीं हो सकती. भारत में डेली सोप की सबसे सफल निर्माता होने के नाते उन्होंने उस समय इस क्षेत्र में क्रांति ला दी, जब लोग अभी भी इस शैली को समझने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने कई अलग-अलग पीढ़ियों के एक्टर्स के साथ काम किया है. कसौटी ज़िंदगी की फेम श्वेता तिवारी ने उस समय को याद करते हुए एकता की सराहना की. भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिम्बाचिया द्वारा होस्ट किए जाने वाले भारती टीवी पॉडकास्ट पर श्वेता ने भारतीय टेलीविज़न पर अपने सुनहरे दिनों के बारे में बात की और बताया कि उस समय कैसा माहौल हुआ करता था.

 उन्होंने कहा, "हमारी इंडस्ट्री इस बात के लिए जानी जाती थी कि तब कोई भी न तो सोता था और न ही आराम करता था. मैं बिना किसी ब्रेक के लगातार 72 घंटे शूटिंग करती थी. 30 दिन के शेड्यूल में काम करने के बाद मुझे 45 दिनों का भुगतान मिलता था. ऐसा इसलिए था क्योंकि मेरी पहली शिफ्ट सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक और दूसरी शिफ्ट शाम 7 बजे से सुबह 2 बजे तक होती थी."

श्वेता ने इतनी मेहनत करने की प्रेरणा का श्रेय एकता कपूर को दिया और कहा, " ऐसा नहीं था कि यह सिर्फ़ कलाकार ही कर रहे थे. एकता खुद पूरी शूटिंग के दौरान मौजूद रहती थीं. वह कभी सोती नहीं थीं, न ही उनकी टीम. उस समय उनके पास 22 शो थे, और जब भी कोई मुझसे पूछता था, 'क्या आप थकी नहीं हैं?' तो मैं उनकी तरफ़ देखती और सोचती कि वह कितना काम कर रही हैं. अगर आप दिन या रात किसी भी समय उन्हें फ़ोन करते, तो वह एक सेकंड में फ़ोन उठा लेतीं." उन्होंने आगे कहा कि एकता कलाकारों की सभी शिकायतों को शांति से सुनती थीं, और अगर किसी को किसी ख़ास सीन से कोई समस्या होती, तो वह उन्हें ख़ुद सीन का फ्लो समझाती थीं. उनसे बात करने के बाद किसी को भी दोबारा समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी.

एक बार जब एकता आपको सीन समझा देतीं, तो आप कभी गलत नहीं हो सकते. जिस तरह से वह कहानी गढ़ती थीं और फिर हमें सुनाती थीं, वह मेरे रोंगटे खड़े कर देता था. जिस तरह से वह डायलॉग बोलती थीं, उससे लगता था कि वह उन्हें निभाने के लिए ज़्यादा उपयुक्त हैं. मैं अक्सर सीन शूट करते समय उनकी नकल करने की कोशिश करती थी. उनका जुनून बेजोड़ था, और वह किसी को प्रभावित करने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ़ खुद को प्रभावित करने के लिए शो बना रही थीं." श्वेता ने माना कि भारतीय टेलीविज़न का दायरा अब काफ़ी बदल गया है, और साथ ही निर्माताओं के लक्ष्य भी बदल गए हैं. उनके अनुसार, अब शो सिर्फ़ "उन चीज़ों के आधार पर बनाए जाते हैं जिनसे उन्हें सबसे ज़्यादा नंबर मिलते हैं."

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