महाभारत के भीम ने 20 की उम्र में ज्वाइन की थी BSF, फिर खिलाड़ी बन भारत को दिलाए थे इतने गोल्ड मेडल

प्रवीण ने ट्रेनिंग शुरू कर दी और 1960 के दशक में, उन्होंने बतौर भारतीय खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करना शुरू कर दिया था.

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प्रवीण कुमार ने 20 की उम्र में ज्वाइन की थी BSF
नई दिल्ली:

टीवी के पॉपुलर सीरियल 'महाभारत' में भीम का किरदार करने वाले एक्टर प्रवीण कुमार सोबती भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका यह किरदार हमेशा जीवित रहेगा. अपनी लंबी कद-काठी के चलते उन्हें सीरियल महाभारत में भीम का रोल मिला था, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया था. पर्दे पर आने से पहले वह एक इंटरनेशनल एथलीट थे और वह देश के लिए एशियन गेम्स में 2 गोल्ड मेडल भी जीत चुके थे. इतना ही नहीं उन्होंने बीएसएफ भी ज्वॉइन की थी. प्रवीण कुमार सोबती का जन्म 6 दिसंबर 1947 को पूर्वी पंजाब के छोटे से कस्बे सरहाली कलां में हुआ था. बचपन से ही उन्हें खेलों में इंटरेस्ट था और इसी के चलते उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था, लेकिन उन्हें देश में पहचान फिल्म निर्माता बी.आर. चोपड़ा की महाभारत में 'भीम' की भूमिका से मिली थी.

20 की उम्र में किया ये मुकाम हासिल

इतने दशकों बाद भी, प्रवीण आज भी सभी की यादों में बसे हैं, और जब भी हम महाभारत और खासकर 'भीम' की बात करते हैं, तो सबसे पहले उनका ही चेहरा सामने आता है. महज 20 साल की उम्र में वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में शामिल हो गये थे, जो भारतीय सेना के सबसे मजबूत बलों में से एक है. उनकी खेलों में रुचि थी और यहीं उन्हें पहले नेशनल और फिर इंटरनेशनल गेम्स में खेलने का मौका मिला था. दरअसल, बीएसएफ के बड़े-बड़े अधिकारी उनकी लंबी चौड़ी कद काठी से खूब प्रभावित थे, जिन्होंने उन्हें डिस्कस थ्रो और हैमर थ्रो पर ध्यान देने के लिए कहा. अधिकारियों की सलाह पर प्रवीण ने ट्रेनिंग शुरू कर दी और 1960 के दशक में उन्होंने बतौर भारतीय खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करना शुरू कर दिया.

भारत झोली में डाला था स्वर्ण पदक

भारत में प्रवीण के आगे कोई खिलाड़ी नहीं टिक पा रहा था. 1960 और 1970 के दशक में वह एक बहुत शानदार खिलाड़ी बन चुके थे और देश के आने वाले खिलाड़ियों के लिए वह एक प्रेरणा थे. साल 1996 के एशियाई खेलों में प्रवीण ने डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक और हैमर थ्रो में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया था. वहीं, 1970 में उन्होंने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीत एक बार फिर देश का सिर गर्व ऊंचा किया था. 1974 में हुए एशियन गेम्स में थोड़े से अंतर से गोल्ड जीतने से चूक गए थे, जिस पर पूरे देश का गोल्ड का सपना टूट गया था और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा था. प्रवीण ने न केवल एशियन गेम्स में, बल्कि 1966 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी अपना खेल दिखाया था, जहां उन्होंने हैमर थ्रो में रजत पदक जीता था.

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