KBC 16 में ई-रिक्शा वाले ने जीते 12.50 लाख रुपये, महात्मा गांधी से जुड़े सवाल पर छोड़ा गेम

KBC यानी कि कौन बनेगा करोड़पति में हाल में एक ऐसा कंटेस्टेंट जीता जिसकी कहानी प्रेरणा देती है कि हमें जिंदगी में किसी भी मोड़ पर हार नहीं माननी चाहिए.

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नई दिल्ली:

KBC यानी कौन बनेगा करोड़पति को यूं ही सपने सच कर दिखाने वाला शो नहीं कहा जाता. फिलहाल हम आपको एक ऐसी खबर बताने जा रहे हैं जो ना केवल एक इंस्पिरेशन है बल्कि दिखाती है कि अगर अपने सपने या लक्ष्य की तरफ आप लगातार मेहनत करते रहें तो एक ना एक दिन सफलता आपके हाथ लग ही जाती है. बिहार के मुजफ्फरपुर के ईरिक्शा ड्राइवर पारस मणि सिंह के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. केबीसी में आने के बाद वो रातोंरात सेंसेशन बन गए. सिंह केबीसी के इंडिया चैलेंजर्स वीक का हिस्सा बने. उन्होंने जुलाई में फास्टेस्ट फाइव राउंड जीतकर केबीसी की हॉटसीट पर बैठने का मौका पाया.

कैसे बनते हैं फास्टेस्ट फाइव का विनर ?

इसमें पूरे देशभर के लोग हिस्सा लेते हैं और जीत उसी की होती है जो लगातार पांच सवालों के सही जवाब सबसे तेजी से देते हैं. इस राउंड में पारस मणि सिंह ने बाजी मार ली. 

कोविड-19 के दौरान बंद हुई दुकान

पारस ने शो में बताया कि कोविड-19 के दौरान जब लॉकडाउन लगा तो उनकी मोबाइल रीचार्ज करने की दुकान बंद हो गई और फिर रोजी रोटी चलाने के लिए उन्हें ईरिक्शा खरीदना पड़ा. इस ईरिक्शा से वो रोजाना 500 से 700 रुपये कमा लेते थे जो कि उनके परिवार के लिए काफी नहीं था. केबीसी में शामिल होना उनका सपना था. जब हॉटसीट पर बैठे तो थोड़े नर्वस थे लेकिन बिग बी ने अपने मजाकिया अंदाज से इन्हें थोड़ा नॉर्मल फील करवाया.

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किस सवाल का नहीं दे पाए जवाब ?

पारस सिंह से महात्मागांधी को लेकर एक सवाल किया गया था. ये सवाल एक ऐसी चुनौती बना जो उनके लिए खतरे का खेल हो सकता था तो ऐसे में उन्होंने गेम को क्विट करने का फैसला किया और साढ़े 12 लाख की रकम लेकर घर पहुंचे. पति की इस उपलब्धि पर पत्नी अंशु सिंह ने कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था मेरे पति इस शो की हॉट सीट तक पहुंचेंगे. जबसे मेरी शादी हुई है तबसे मैं उन्हें केबीसी देखते देख रही हूं. हमने कभी टीवी पर फिल्में या गाने नहीं देखे. हमेशा जनरल नॉलेज या करंट अफेयर ही चलता रहा है.

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पारस ने कहा, मैंने हमेशा केबीसी में जाने का सपना देखा. मैं मिडिल क्लास परिवार से आता हूं और मैं ऑनर्स ग्रैजुएट हूं. जबसे मेरी दुकान बंद हुई मैं तब से बहुत संघर्ष कर रहा हूं. मेरी बहन ने मुझे ई-रिक्शा दिलाने में मदद की. लेकिन मेरे दिमाग से कभी केबीसी नहीं उतरा. मैं कोशिश करता रहा और आखिर में ये सपना सच हुआ.
 

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