इंडियन आइडल में 'पपेट शो' चलाने वाले सवाई भाट ने बिखेरा अपनी आवाज का जादू, इंटरव्यू में बोले- सबको लगता था कि...

'इंडियन आइडल 12 (Indian Idol 12)' में अपनी आवाज का जादू बिखेरने वाली सवाई भाट (Sawai Bhatt) ने हाल ही में एनडीटीवी से की खास बातचीत.

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नई दिल्ली:

टेलीविजन के पॉपुलर शो 'इंडियन आइडल 12 (Indian Idol 12)' शुरुआत हो चुकी है. सिंगिंग की दुनिया में धमाल मचाने वाले इस शो का प्रीमियर 28 नवंबर को हुआ था. शो में जहां एक से एक कंटेस्टेंट गाने में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शाते नजर आए. वहीं, दूसरी ओर पपेट शो चलाने वाले सवाई भाट (Sawai Bhatt) ने भी इस रियलिटी शो में अपनी जगह बनाई. हालांकि, खास बात यह है कि आज तक उन्होंने सिंगिंग की कोई भी फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली. इसके बावजूद सवाई ने इतने बड़े प्लेटफार्म पर अपनी आवाज का जादू बिखेर दिया. हाल ही में सवाई भाट ने एनडीटीवी से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने अपनी स्ट्रगल को लेकर कई बाते बताईं. 

-जब आपको पता चला कि आप 'इंडियन आइडल (Indian Idol)' में सेलेक्ट हो गए हैं, तो आपका पहला रिएक्शन क्या था? वह मुझे एक सपना सा लगा था. मुझे लगा कि मेरी जिंदगी का एक दरबाजा खुल गया है. मुझे ऐसा लगा जैसे कि भगवान का आशीर्वाद मिल गया हो. अब इंडियन आइडल के मंच से मैं अपने मां-बाप और भाई-बहनों के लिए कुछ करना चाहता हूं. 

-बिना किसी फॉर्मल ट्रेनिंग के इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर अपना टैलेंट दिखाने के लिए आपने खुद को कैसे तैयार किया?
जहां तक संगीत की बात आती है, तो मैंने संगीत में ना तो कोई डिग्री ली है और ना ही कोई पढ़ाई की है. लेकिन राजस्थान में जहां में रहता था, जैसलमेर के अंदर मंगन्यार कम्युनिटी है, तो उन सभी को सुन-सुनकर मैंने अपने घर भी चलाया और वहां से सीखा भी. इंडियन आइडल ऐसा मंच है, यहां पर एक सपना लेकर आदमी आता है, तो यहां पर सब परफेक्ट हो ही जाते हैं.

-घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए 'इंडियन आइडल (Indian Idol)' में जाने का फैसला लेना आपके लिए कितना मुश्किल था?
काफी लोग ये सोचते थे कि यह कभी अच्छा सिंगर नहीं बन सकता. सबको लगता था कि बस ये गली-गली में गांव-गांव जाकर मांगता रहेगा हमेशा. क्योंकि सरस्वती माता की देन थी और मैं थोड़ा अच्छा गा भी लेता था. तो सरस्वती माता की देन हुई और भगवान का आशीर्वाद हुआ कि उन्होंने मुझे यहां तक पहुंचाया. हालांकि, मुझे कभी किसी ने सपोर्ट नहीं किया. लेकिन मेरी नानी थी और दादाजी थे जिन्होंने मेरा थोड़ा साथ दिया. क्योंकि हमारा रहने के लिए घर नहीं था तो मेरे दादाजी ने गांव में हमे झोपड़ी के लिए जगह दी. हमने अपना समय गांव-गांव में भटकते हुए काटा. जो लोग अब यह बोलते हैं कि हमने सवाई का सपोर्ट किया, दरअसल उनमें से किसी ने भी मेरा सपोर्ट नहीं किया. केवल मेरे ननिहालवालों ने किया है.

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