Dara Singh: कुश्ती के अखाड़े से घर-घर में बतौर हनुमान पूजे जाने का सफर

हनुमान बन कर वे लोगों के दिलों में ऐसे उतरे कि पूरे देशभर ने ही उन्हें हनुमान मान लिया और उन्हें पूजना शुरू कर दिया. उस दौर में तो कई कैलेंडर्स और पोस्टर में हनुमान बने दारा सिंह ही नजर आते थे.

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Dara Singh: कुश्ती के अखाड़े से घर-घर में बतौर हनुमान पूजे जाने का सफर
नई दिल्ली:

ऐसा कामयाब सफर चंद खुशनसीबों को ही नसीब होता है. क्या आप आज सोच सकते हैं कि कोई रेसलर फिल्मों में आए और हर रोल में दर्शकों के दिल में उतर जाए. जिसमें एक्शन, कॉमेडी ही नहीं इंटेंस रोमांस भी शामिल हो. शायद नहीं. क्या आप सोच सकते हैं कि वही रेसलर, फिल्मों में हिट होने के बाद मायथॉलॉजी का फेमस कैरेक्टर बन जाए और हर घर में पूजा जाए. इसका जवाब भी शायद ना में ही होगा. इस ना को हां में बदलना है तो आपको रुस्तम ए हिंद दारा सिंह को याद करना होगा. जिनके नाम के साथ ही छह फीट से ज्यादा ऊंचे, लंबे, चौड़े गबरू जवान की इमेज जेहन में आती है.

एक भी कुश्ती नहीं हारे दारा

जिम में जाकर घंटों वर्जिश करके बॉडी बनाने का हुनर तो युवाओं को अब जाकर आया है. दारा सिंह तो उन दिनों में ही किसी बॉडी बिल्डर से कम नजर नहीं आते थे जब न जिम थे न ऐसे इंस्ट्रक्टर जो बॉडी बिल्डिंग की सलाह दें. देस की माटी में रमकर दारा सिंह ने बॉडी भी बनाई और कुश्ती के दांव-पेंच भी सीखे. दांव-पेंच भी ऐसे कि दुनियाभर के पहलवान दारा सिंह को पटखनी देने की कोशिश करते रहे. पर दारा सिंह को एक बार भी धूल नहीं चटा सके.

अमृतसर के धर्मूचक गांव में 1928 में जन्मे दारा सिंह ने बचपन से ही माटी के साथ दो चार होना सीख लिया था. 19947 में उनके पेंचोखम ने सिंगापुर में उनकी पहलवानी का लोहा मनवा दिया. इसके बाद दारा सिंह नहीं रुके. 1983 में कुश्ती से रिटायर होने तक वो दुनियाभर के 500 पहलवानों को धूल चटा चुके थे. जिनमें से कईयों का वजन 200 किलो तक था. उनके इस दम खम ने उन्हें रुस्तम-ए-हिंद का खिताब दिलवाया.

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बॉलीवुड के पहले ही-मैन

कुश्ती का ये माटी पकड़ पहलवान जब फिल्मों में किस्मत आजमाने उतरा तो यहां भी उसका सिक्का खूब चला. फिल्मी सफर यूं तो फिल्म संगदिल से 1952 में शुरू हुआ. बतौर हीरो 1963 से स्क्रीन पर चमकने का मौका मिला. फिल्म फौलाद में चुलबुली मुमताज के साथ हट्टे कट्टे दारा सिंह की जोड़ी खूब जमी. हॉलीवुड का He Man कैरेक्टर तो बहुत बाद में आया, हिन्दुस्तानी फिल्मों में ब्लैक एंड व्हाइट के जमाने से ही दारा सिंह को मैन कहा जाने लगा था. इसके बाद उन्होंने वीर भीमसेन, हरक्यूलिस, आंधी औऱ तूफान, राका, सैमसन, टारजन कम्स टू डेल्ही जैसी कई फिल्मों में काम किया. कभी लवर बने, कभी डाकू.

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हनुमान के रूप में पूजे जाने लगे

दारा सिंह ने कई किरदार किए पर किसी एक में बंधे नहीं. शायद यही वजह रही कि मायथॉलोजी बेस्ड फिल्मों में भी वो आसानी से स्वीकार किए गए. फिल्मी पर्दे पर वो कई बार भीम बन कर आए. कुछ फिल्मों में महादेव और हनुमान का भी किरदार किया. शायद इन्हीं की वजह से वे बीआर चोपड़ा की रामायण में हनुमान के किरदार के लिए पहली पसंद रहे. हनुमान बन कर वे लोगों के दिलों में ऐसे उतरे कि न सिर्फ पंजाब बल्कि पूरे देशभर ने ही उन्हें हनुमान मान लिया और उन्हें पूजना शुरू कर दिया. उस दौर में तो कई कैलेंडर्स और पोस्टर में हनुमान बने दारा सिंह ही नजर आते थे. ये भी क्या नेमत ही थी कि दारा सिंह ने जिस विधा में खुद को आजमाया वे खुद अपनी कसौटी से ज्यादा उस पर खरे उतरे. और दर्शक उन पर पहलवान से लेकर भगवान तक हर रूप में प्यार लुटाते रहे.

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