बात 1980 के दशक की है. उन दिनों टीवी ऐसा कतई नहीं था जैसा हम आज देख रहे हैं. दिन में समय तय होता था और दूरदर्शन पर समाचार से लेकर सीरियल तक और फिल्म से लेकर गानों तक का एक समय होता था. इस तरह दर्शकों को बहुत ही सीमित तरीके से स्तरीय कंटेंट देखने को मिलता था. टीवी की दुनिया नई थी, और उसमें नए प्रयोग भी हो रहे थे. 1989 में एक ऐसा सीरियल आया जिसने टेलीविजन की दुनिया में हॉरर कंटेंट का आगाज किया. जी हां, मेरी बात सोलह आने सही है क्योंकि आहट और फियर फाइल्स से पहले भी दूरदर्शन पर एक ऐसी हॉरर सीरियल आया था, जिसने उस दौर के हम बच्चों की रात की नींद उड़ा दी थी. फिर रात के 11 बजे टीवी पर कोई चीख गूंजती तो डर के मारे रोंगटे खड़े हो जाते. यही नहीं, इस हॉरर सीरियल के अंदर जो भी किले के अंदर जाता था, उसकी पीठ पर कुछ निशान बन जाते थे और फिर होता था खौफनाक खेल. तो क्या आप अनुमान लगा पाए उस सीरियल का नाम?
ये सीरियल दूरदर्शन पर आने वाला मशहूर धारावाहिक 'किले का रहस्य' था. यह बात 1989 की है. रात 11 बजे दूरदर्शन पर यह शो आया करता था. 'किले का रहस्य' हफ्ते में एक दिन आता था और ऐसा खौफ पैदा करके जाता था, और पूरे हफ्ते यही लगता था कि आगे क्या होगा. किले का रहस्य में मशहूर एक्टर, रंगकर्मी, राइटर पीयूष मिश्रा लीड रोल में नजर आए थे. इस शो में उनके अलावा वीरेंद्र सक्सेना भी नजर आए थे. इस तरह इस शो को उस दौर में काफी पसंद किया गया था, लेकिन इसका अंत बहुत ही कमाल का था.
दूरदर्शन के इस पॉपुलर धारावाहिक 'किले का रहस्य' की कहानी एक किले की थी. इस किले को लेकर कई तरह की भ्रांतियां थीं और इसे भुतहा बताया जाता था. यही नहीं, अंदर जाने वाले की पीठ पर इंसानी हाथों के निशान छप जाते थे. जिसके बाद उस शख्स की खैर नहीं होती थी. लेकिन इसका अंत बहुत ही चौंकाने वाला होता था. लेकिन रात को जब यह शो आता था, तो अकसर कलेजा मुंह को आने लगता था और डर के बावजूद पूरे हफ्ते यही लगता था कि अब आगे क्या होगा? बेशक हॉरर के मामले में हम काफी आगे निकल चुके हैं लेकिन इस शो का जो मैजिक था, वह आज भी सिर चढ़ के बोलता है.