
रियो में दीपा कर्मकार और अभिनव बिंद्रा बेहद मामूली अंतर से मेडल चूक गए
खास बातें
- सबसे ज्यादा निराशा तो निशानेबाजी में हाथ लगी
- टेनिस और तीरंदाजी में भी मेडल की उम्मीद पूरी नहीं हुई
- क्या सिंधु, श्रीकांत और योगेश्वर बदल पाएंगे तकदीर?
रियो ओलिंपिक खेलों में 'टीम इंडिया' के लिए निराशाजनक प्रदर्शन का दौर खत्म नहीं हो रहा. भारत ने इस बार ओलिंपिक के लिए 118 सदस्यीय दल रियो भेजा है, इसमें करीब 70 खिलाड़ी हैं. ओलिंपिक खेलों में इस बड़े दल के भाग लेने के चलते आस बंधी थीं कि भारत इस बार लंदन ओलिंपिक के प्रदर्शन को बेहतर करेगा. खेल प्रेमियों की यह उम्मीद बेवजह भी नहीं थी. साई सहित विभिन्न खेल संघों की ओर से पदक जीतने के लंबे-चौड़े दावे किए गए थे. साई के एक वरिष्ठ पदाधिकारी तो यह कहने से भी नहीं चूके थे कि रियो में भारतीय दल 10 से 12 पदक जीत सकता है. उन्होंने निशानेबाजी, तीरंदाजी, कुश्ती, बैडमिंटन, भारोत्तोलन और बॉक्सिंग को भारतीय दल की पसंदीदा इवेंट बताया था.
बहरहाल, रियो ओलिंपिक को शुरू हुए 10 से अधिक दिन हो चुके हैं और भारत के मेडल का खाता अभी तक नहीं खुला है. भारतीय खेमे से आ रहीं एक के बाद खबरें खेल प्रशंसकों में निराशा के साथ रोष बढ़ाती जा रही हैं. शूटर अभिनव बिंद्रा और जिमनास्ट दीपा कर्मकार को बेशक बदकिस्मत माना जा सकता है कि ये बेहद बारीक अंतर से मेडल चूक गए. लेकिन मेडल के दावेदार माने जा रहे दूसरे खिलाड़ियों की बात करें तो वे अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से कोसों दूर नजर आए.
शूटिंग में सबसे ज्यादा मेडल की उम्मीद थी, लेकिन सबसे ज्यादा निराश इसी इवेंट ने किया. जीतू राय, गगन नारंग, हिना सिद्धू , अपूर्वी चंदेला, मैराज अहमद खान, चैन सिंह चमक नहीं दिखा पाए. तीरंदाजी में दीपिका कुमारी, बोम्बायला देवी और लक्ष्मीरानी मांझी की तिकड़ी से टीम और व्यक्तिगत मुकाबले में बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन नतीजा सिफर रहा. पुरुष तीरंदाजी में शानदार प्रदर्शन करने वाले अतानु दास के सफर पर भी प्री.क्वार्टर फाइनल में विराम लग गया. इसी तरह बैडमिंटन में साइना नेहवाल, टेनिस के मिक्स्ड डबल्स, वुमेन डबल्स और मेंस डबल्स इवेंट में भी मेडल की उम्मीदों ने परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ दिया. एथलेटिक्स में ललिता बाबर और रोइंग में दत्तू भोकानल का प्रदर्शन जरूर इस दौरान कुछ उम्मीद जगाने वाला रहा. ओलिंपिक अब अंतिम दौर में है. ऐसे में हर गुजरते दिन के साथ भारत की मेडल की उम्मीदें धूमिल पड़ती जा रही हैं.
ओलिंपिक में छोटे से छोटे देशों ने भी अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया है, लेकिन मॉस्को ओलिंपिक के बाद 90 के दशक के अंतिम चरण में मेडल की दौड़ में आया भारत रियो ओलिंपिक में तो पीछे ही जा रहा है. भारतीय दल ओलिंपिक खेलों में आखिरी बार 1992 में बार्सिलोना में मेडल पदक विहीन रहा था. इसके बाद 1996, 2000, 2004, 2008 और 2012 के ओलिंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने कोई न कोई मेडल जरूर जीता है. 2008 के बीजिंग और 2012 के लंदन ओलिंपिक को तो भारतीय खेल इतिहास के लिहाज से 'मील का पत्थर' माना जा सकता है। बीजिंग में हमने तीन (अभिनव बिंद्रा के गोल्ड सहित) और लंदन में छह मेडल पर कब्जा जमाया था. क्या रियो इस लिहाज से हमारे लिए निराशा से भरा या बार्सिलोना ओलिंपिक की तरह रहने वाला है, जवाब चंद दिनों में मिल जाएगा....किसी खिलाड़ी का चमत्कारी प्रदर्शन ही मेडल विहीन रहने के इस नैराश्य को तोड़ सकता है.
रियो में अब बैडमिंटन में पीवी सिंधु व के.श्रीकांत और कुश्ती में योगेश्वर दत्त ही मेडल की 'टिमटिमाती' उम्मीद (16 अगस्त शाम 6 बजे तक ) हैं. नॉकआउट दौर में पहुंचने के बाद मुकाबले कड़े..और कड़े होते जा रहे हैं. जाहिर है भारत के लिए मेडल की राह अब बेहद मुश्किल हो गई है...