40 साल में लिखे 4000 गाने, 'अंधा कानून' में अमिताभ के लिए लिखे गीत के लिए क्यों आनंद बक्शी पड़ा पछताना, बोले- मुझसे गलती हो गई... 

Anand Bakshi regret song he wrote for Amitabh in Andha Kanoon : आनंद बक्शी ने अमिताभ बच्चन की अंधा कानून के लिए गाना लिखा था, जिसके बाद वह पछताए थे. 

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
आनंद बख्शी को इस गाने को लेकर हुआ था अफसोस
नई दिल्ली:

बॉलीवुड में कुछ गीतकार ऐसे हैं, जिन्होंने शब्दों के जरिए जज्बातों को सीधे दिलों तक पहुंचाया है. आनंद बक्शी उन्हीं चुनिंदा गीतकारों में से एक थे. उन्होंने करीब 40 साल के अपने करियर में 4,000 से भी ज्यादा गाने लिखे. उनके लिखे गीतों की खास बात थी कि वो आम बोलचाल की भाषा में होते थे, जिनमें भावनाएं साफ झलकती थीं. चाहे प्यार हो, दर्द हो, दोस्ती हो या देशभक्ति, उन्होंने हर तरह की भावनाओं को बहुत सुंदर शब्दों में लिखा. लेकिन इतने सफल और अनुभवी होने के बावजूद एक समय ऐसा आया जब उन्हें अपने एक गाने को लेकर अफसोस हुआ. यह किस्सा 1983 में आई फिल्म 'अंधा कानून' से जुड़ा है. इसका जिक्र उनके बेटे राकेश आनंद बक्शी ने उनकी जीवनी 'नग्मे किस्से बातें यादें' में किया. बता दें कि इस फिल्म में 'अमिताभ बच्चन' ने मुस्लिम किरदार निभाया था. वह जां निसार खान की भूमिका में थे, जो एक पूर्व वन अधिकारी था और उसे एक शिकारी की हत्या के झूठे आरोप में जेल में डाल दिया गया था.

'नग्मे किस्से बातें यादें' किताब में बताया कि निर्देशक ने बक्शी साहब को फिल्म की कहानी अमिताभ बच्चन के नाम से सुनाई थी, लेकिन यह नहीं बताया कि बिग बी का किरदार किस धर्म से ताल्लुक रखता है. आनंद बक्शी ने इस फिल्म के लिए एक गाना लिखा, जो उस समय मशहूर हुआ. इस गाने की चंद लाइनें 'रोते-रोते हंसना सीखो, हंसते-हंसते रोना, जितनी चाभी भरी राम ने, उतना चले खिलौना' आज भी लोग गुनगुनाते हैं. इसमें 'राम' शब्द भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम के रूप में आया है.

जब आनंद बक्शी को पता चला कि फिल्म में अमिताभ बच्चन एक मुस्लिम किरदार निभा रहे हैं, तो उन्हें बहुत अफसोस हुआ. उन्होंने यह बात अपने बेटे को बताई. बेटे ने किताब में किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि उन्होंने कहा, ''मुझसे गलती हो गई थी कि गाना लिखने से पहले मैंने निर्देशक से हीरो के किरदार का नाम और उसका मजहब नहीं पूछा था. निर्देशक अमिताभ बच्चन के नाम से कहानी सुना रहा था. मुझे अगर पता होता कि अमिताभ फिल्म में एक मुस्लिम किरदार निभा रहे हैं तो मैं उस किरदार की तहजीब और उसके मजहब के मुताबिक गाना लिखता.''

आनंद बक्शी का जन्म 21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आकर लखनऊ में बस गया. बचपन से ही आनंद को शब्दों और गीतों से गहरा लगाव था. फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश लेकर उन्होंने नौसेना भी जॉइन की, ताकि मुंबई आ सकें. उनका असली मकसद मुंबई आकर फिल्मों में अपना नाम बनाना था.

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1958 में आई फिल्म 'भला आदमी' में गाने लिखने से की। उन्हें चार गानों के लिए 150 रुपये मिले थे. काफी मेहनत के बाद आनंद को असली पहचान 1965 में रिलीज हुई फिल्म 'जब जब फूल खिले' से मिली. इस फिल्म के लिए उन्होंने 'ये समां समां है ये प्यार का', 'परदेसियों से ना अखियां मिलाना', और 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' गाने लिखे.

चार दशकों के करियर में उन्होंने 'मेरे महबूब कयामत होगी', 'चिट्ठी न कोई संदेश', 'चांद सी महबूबा हो मेरी', 'झिलमिल सितारों का', 'सावन का महीना पवन करे शोर', 'बागों में बहार है', 'मैं शायर तो नहीं', 'झूठ बोले कौआ काटे', 'कोरा कागज था ये मन मेरा', 'तुझे देखा तो यह जाना सनम', 'हमको हमी से चुरा लो', 'उड़ जा काले कावां', 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो', 'रूप तेरा मस्ताना, टिप टिप बरसा पानी', और 'इश्क बिना क्या जीना यारों' जैसे नायाब गाने लिखे. आनंद बक्शी ने अपनी जिंदगी में बड़ा संघर्ष किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी. 30 मार्च 2002 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Delhi-NCR में पुराने Petrol, Diesel Vehicles पर नहीं लगेगी रोक, Supreme Court का बड़ा फैसला