EXCLUSIVE: जब शहनाई की धुन सुन मृत्यु शैया से उठ खड़े हुए थे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पढ़ें क्या है ये करिश्मा

उस्ताद बिस्मिल्ला खां बेशक इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी शहनाई की धुन आज भी गूंजती हैं. लेकिन आप जानते हैं कि एक बार वे मृत्यु शैया जैसी हालत में थे फिर भी शहनाई की धुन सुनते ही उनके शरीर में नई जामन आ गई थी.

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EXCLUSIVE: उस्ताद Bismillah Khan से जुड़ा ये किस्सा कर देगा हैरान
नई दिल्ली:

भारत के मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां (Bismillah Khan) अपने संगीत से हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देते थे. 21 मार्च 1916 को जन्मे उस्ताद ने शहनाई को शास्त्रीय संगीत में एक नई और ऊंची पहचान दिलाई. बनारस और गंगा किनारे उनकी शहनाई की धुन सुनने का अपना ही आनंद होता था. 21 अगस्त 2006 को भले ही वो इस दुनिया को अलविदा कह गए, मगर उनकी शहनाई आज भी लोगों के दिलों में गूंजती है. उनकी याद को जिंदा रखने के लिए उनकी गोद ली हुई बेटी और मशहूर शास्त्रीय गायिका सोमा घोष अक्सर विशेष कार्यक्रम करती रहती हैं. हाल ही में एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने उस्ताद से जुड़ी एक बेहद अनसुनी घटना साझा की.

'मृत्यु शैया' पर उस्ताद और शहनाई की धुन

सोमा घोष ने बताया कि एक बार संसद भवन में प्रोग्राम तय हुआ था, लेकिन ठीक उससे पहले उस्ताद को हीट स्ट्रोक हो गया और वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. हालत इतनी खराब थी कि वे मृत्यु शैया पर पहुंच गए थे. सोमा तुरंत बनारस पहुंचीं. वहां उन्होंने देखा कि बाबा लगभग बेहोशी की हालत में थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, तभी उन्होंने उस्ताद की और विलायत अली खां साहब की जुगलबंदी की रिकॉर्डिंग उनके कान में लगा दी. कुछ ही देर बाद चमत्कार हुआ. उस्ताद ने आंखें खोलीं और मुस्कुराते हुए कहा- मैंने कहा मैं अभी आई हूं. बाबा आपको संसद जाना है ना? उन्होंने कहा हां मुझे जाना है, मुझे बैठा दो. बैठाया गया तो चाय मंगवाई, वाकई ये इफेक्ट ऑफ म्यूजिक. उन्होंने पूछा ये कौन बजा रहा था. मैंने कहा- आप ही तो बजा रहे थे.

सादगी से भरा जीवन और सुरों से लगाव

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का नाम आते ही आज भी शहनाई की मीठी गूंज कानों में सुनाई देती है. उन्होंने साबित कर दिया कि संगीत की असली ताकत दिलों को जोड़ने और आत्मा को छूने में है. उन्हें 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. बनारस की गलियों से निकलकर उन्होंने पूरी दुनिया को अपने सुरों से मोहित किया, लेकिन जीवन के आखिरी पल तक उनकी सादगी और गंगा-किनारे की मिट्टी से जुड़ाव कायम रहा. शायद यही वजह है कि उनका संगीत सिर्फ सुना नहीं जाता, बल्कि महसूस किया जाता है.

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