नंगे पैर चले, स्टील का डब्बा लेकर बाथरूम की लाइन में खड़े हुए सुपरस्टार राजेश खन्ना, कुछ ऐसे थे करियर के ढलान के वो दिन

1969 से 1975 तक बेमिसाल सफलता का आनंद लेने के बावजूद, 70 के दशक के आखिर और 80 के दशक की शुरुआत में ज्यादातर फ्लॉप फिल्मों की वजह से उनका करियर लगभग रुक गया था.

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बाथरूम की लाइन में डब्बा लेकर खड़े हुए राजेश खन्ना
नई दिल्ली:

एक समय था जब राजेश खन्ना बॉलीवुड के सबसे चहेते सुपरस्टार थे, जिन्होंने तीन सालों में लगातार 17 से ज़्यादा हिट फिल्में दीं, जैसे कटी पतंग, आनंद, अंदाज़, खामोशी वगैरह. लेकिन, जितनी तेज़ी से राजेश खन्ना सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचे, उतनी ही तेजी से उनका पतन भी हुआ. 1969 से 1975 तक बेमिसाल सफलता का आनंद लेने के बावजूद, 70 के दशक के आखिर और 80 के दशक की शुरुआत में ज्यादातर फ्लॉप फिल्मों की वजह से उनका करियर लगभग रुक गया था. राजेश खन्ना, जो कभी अपने सुपरस्टार बिहेवियर के लिए जाने जाते थे उन्होंने अवतार की शूटिंग के दौरान सेलिब्रिटी होने के सारे फायदे छोड़कर सबको हैरान कर दिया. मोहन कुमार की डायरेक्ट की गई इस फैमिली ड्रामा फिल्म में शबाना आज़मी भी थीं, और इस फिल्म के लिए एक्टर ने यूनिट के बाकी लोगों की तरह ही रहने का फैसला किया. वह नंगे पैर पास के मंदिर गए, खास इंतज़ाम की मांग करने के बजाय ज़मीन पर सोए, और क्रू की तरह ही रोज़ का रूटीन फॉलो किया.

शबाना आजमी ने किया खुलासा

रेडियो नशा के साथ बातचीत में उन दिनों को याद करते हुए शबाना आज़मी ने बताया कि राजेश खन्ना खुशी-खुशी एक साधारण स्टील का डिब्बा लेकर बाथरूम के लिए लाइन में खड़े होते थे. उन्होंने बताया कि अपने करियर के उस स्टेज पर, एक्टर अब अपने सुपरस्टार स्टेटस का दावा नहीं कर सकते थे और उन्हें अपने आस-पास की सच्चाई के हिसाब से ढलना पड़ा.

अवतार ने खन्ना की ऑन-स्क्रीन इमेज में भी एक अहम मोड़ लाया. पहली बार, उन्होंने जानबूझकर अपनी मशहूर रोमांटिक पर्सनैलिटी से हटकर अपने लुक के साथ एक्सपेरिमेंट किया. उन्होंने अवतार किशन का किरदार निभाया, जो एक उम्रदराज मिडिल-क्लास आदमी है और बड़े बच्चों का पिता है, यह रोल उस लवर-बॉय इमेज से बिल्कुल अलग था जिसने कभी उन्हें पहचान दी थी. यह रिस्क कमर्शियली सफल रहा, क्योंकि फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई और खबरों के मुताबिक बॉक्स ऑफिस पर 8 करोड़ रुपये से ज़्यादा कमाए.

असफलता के लिए दूसरों ठहराया जिम्मेदार

हालांकि, उनके बायोग्राफर यासिर उस्मान के अनुसार, किताब 'राजेश खन्ना: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ इंडियाज़ फर्स्ट सुपरस्टार' में बताया गया है कि अपने करियर में गिरावट के दौरान एक्टर को खुद को समझने में मुश्किल हुई. उस्मान ने बताया कि जब उनकी फिल्में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती थीं, तो खन्ना अक्सर दूसरों को जिम्मेदार ठहराते थे. किताब में अनुभवी लेखक सलीम खान के हवाले से कहा गया है कि खन्ना अपनी पसंद की जांच करने में नाकाम रहे और इसके बजाय उन्हें लगा कि बाहरी ताकतें उनके खिलाफ साज़िश कर रही हैं.

बाद के सालों में, खन्ना ने खुद को फिर से स्थापित करने की बार-बार कोशिश की, लेकिन किसी से भी कोई नतीजा नहीं निकला. लीडिंग-मैन का दर्जा वापस पाने की उनकी आखिरी कोशिश 2008 की इरोटिक ड्रामा वफ़ा: ए डेडली लव स्टोरी से हुई, जो बुरी तरह फ्लॉप हो गई. राजेश खन्ना का 2012 में 69 साल की उम्र में निधन हो गया, और वह अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो बेजोड़ स्टारडम, कमजोरी और विरोधाभास से भरी थी.

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