11 दिसंबर को सुपरस्टार दिलीप कुमार की 101वीं जयंती है. अपने लंबे करियर में दिलीप कुमार ने कई हिट फिल्मों में काम किया लेकिन उन्हें हमेशा वह काम नहीं मिला जो उन्हें पसंद था. क्या आप जानते हैं कि उन्होंने ने एक बार खुलासा किया था कि जब उन्हें ऐसे रोल मिलते थे जो उनके टैलेंट के साथ न्याय नहीं करते थे तो उन्हें 'निराशा' होती थी. 1995 में साउथ एशिया मॉनिटर के साथ बात करते हुए जब दिलीप से पूछा गया कि क्या 'सिनेमा के अपने करियर और उपलब्धियों' में उनके लिए हासिल करने के लिए कुछ बचा है तो उन्होंने यही जवाब दिया था.
निराश होने पर क्या बोले थे दिलीप
दिलीप ने कहा था, "मैं इसे बिल्कुल उस तरह से नहीं रखूंगा लेकिन साहित्यिक दृष्टिकोण से बेहतर किरदार के लिए हफ्तों और महीनों तक इंतजार करने पर मुझे कभी-कभी निराशा होती थी. इन दिनों लोग मेरे पास अच्छी स्क्रिप्ट की बजाय तैयार ऑडियो कैसेट के साथ आते हैं...और चाहते हैं कि मैं उसकी नकल करूं.
दिलीप अपनी उपलब्धियों पर
यह पूछे जाने पर कि क्या उनके पास 'हासिल' करने के लिए कुछ और है दिलीप ने कहा था, "नहीं...मैंने तो अभी शुरुआत भी नहीं की है. बहुत कुछ करना था लेकिन हमें अपने पास मौजूद फ्रेमवर्क यानी ढांचे के अंदर ही काम करना था. बेहतर परफॉर्म करने के लिए आपको बेहतर फिल्में, थीम और किरदार चाहिए. हमने सब कुछ डेवलप किया है लेकिन हैरानी की बात है कि हमारे पास मॉडर्न लिट्रेचर की कमी है. हमने अपने कल्चर को अनदेखा किया है. मुझे लगता है कि काश मुझे कुछ और अच्छे...बेहतर किरदार मिले होते.
दिलीप का करियर
दिलीप कुमार ने बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले आई फिल्म ज्वार भाटा (1944) से एक एक्टर के तौर पर शुरुआत की. जुगनू (1947) में उनकी पहली बॉक्स ऑफिस हिट थी. इसके बाद उन्होंने अंदाज (1949), आन (1952), दाग (1952), इंसानियत (1955), आजाद (1955), नया दौर (1957), मधुमती (1958), पैगाम (1959), कोहिनूर (1960), मुगल-ए-आजम (1960), गंगा जमना (1961), राम और श्याम (1967) जैसी फिल्में कीं.
उन्होंने दास्तान (1972), सगीना (1974), बैराग (1976), क्रांति (1981), विधाता (1982), शक्ति (1982), कर्मा (1986), सौदागर (1991) में भी शानदार परफॉर्मेंस दीं. वो आखिरी बार किला (1998) में नजर आए थे.