'करोल बाग में बेची साड़ियां', कॉलेज में 2 साल हुआ फेल, बाद में बना बॉलीवुड का दमदार एक्टर

अभिनेता विजय राज ने हाल ही में वेब सीरीज़ जमुनापार सीज़न 2 में एक अहम किरदार निभाया है. प्रमोशन के दौरान हुई खास बातचीत में उन्होंने अपने संघर्ष और अभिनय की अनकही शुरुआत के बारे में खुलकर बात की.

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यह एक्टर साड़िया बेचता था...
नई दिल्ली:

तीन दशकों से ज्यादा समय से अपने शानदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाले अभिनेता विजय राज ने हाल ही में वेब सीरीज़ जमुनापार सीज़न 2 में एक अहम किरदार निभाया है. प्रमोशन के दौरान हुई खास बातचीत में उन्होंने अपने संघर्ष और अभिनय की अनकही शुरुआत के बारे में खुलकर बात की.
 

'अभिनय मेरा सपना नहीं था, ये तो संयोग था' — विजय राज

विजय ने मुस्कुराते हुए कहा — 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अभिनेता बनूंगा. यह सब अचानक हुआ. उस समय मैं एक अकाउंटेंट की नौकरी कर रहा था और दिल्ली के ईवनिंग डीएवी कॉलेज में पढ़ता था. एक दिन मेरी मुलाक़ात कुछ ऐसे लोगों से हुई जो थिएटर करते थे, और यहीं से मेरी यात्रा शुरू हुई.' वह बताते हैं कि परिवार को शुरू में लगा कि वह सिर्फ किसी गतिविधि में व्यस्त हैं. लेकिन जब यह पेशा बनने लगा तो विरोध शुरू हो गया. सरकारी नौकरी उस दौर में सम्मान का प्रतीक थी, और उनके पिता भी यही चाहते थे कि वह उसी राह पर चलें.

 थिएटर के जुनून में खोकर परीक्षा में फेल

थिएटर के प्रति आकर्षण इतना बढ़ गया कि विजय अपनी अंतिम वर्ष की परीक्षा में फेल हो गए. उन्होंने बताया, “परीक्षा के दौरान मैं कुछ भी नहीं लिख पाया और सिर्फ अपना नाम लिखकर पेपर जमा कर दिया. लगा था ईमानदारी की कद्र होगी, पर मैं फेल हो गया.” विजय राज ने 18 साल की उम्र में कमाना शुरू किया. उन्होंने एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के साथ काम किया और कई नौकरियां कीं — यहाँ तक कि करोल बाग की एक साड़ी की दुकान पर पार्ट-टाइम काम भी किया. उन्होंने कहा, “हमारे ज़माने में 15 साल की उम्र से ही जिम्मेदारियाँ शुरू हो जाती थीं.”

 भोपाल एक्सप्रेस से बॉलीवुड तक का सफर

1999 में विजय ने भोपाल एक्सप्रेस से फिल्मी करियर की शुरुआत की. इसके बाद जंगल, मानसून वेडिंग, रन, गली बॉय, वेलकम, देल्ही बेली और गंगूबाई काठियावाड़ी जैसी फिल्मों में उन्होंने यादगार किरदार निभाए. हाल ही में रिलीज़ हुई उनकी फिल्मों चंदू चैंपियन और भूल भुलैया 3 को दर्शकों से बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली. उनके सह-कलाकार वरुण बडोला ने भी अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए बताया कि उन्होंने लाजपत नगर में कालीन बेचने का काम किया था. दोनों की कहानियाँ इस बात का उदाहरण हैं कि मेहनत और लगन से ही सफलता हासिल होती है.

 

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