Karisma Kapoor Movie Zubeidaa: श्याम बेनेगल की 2001 में आई फिल्म 'ज़ुबैदा' एक कल्ट क्लासिक फिल्म थी. फिल्म में करिश्मा कपूर (Karisma Kapoor), रेखा, मनोज बाजपेयी और सुरेखा सीकरी प्रमुख भूमिकाओं में थे. इस फिल्म की कहानी एक्ट्रेस जुबैदा (Zubeida) की जीवन की कहानी पर बेस्ड थी. स्क्रीनप्ले पत्रकार खालिद मोहम्मद ने लिखा था, जो जुबैदा बेगम के बेटे हैं. एक ऐसी कहानी जो ग्लैमर, दिल टूटने की कहानी और अनसुलझे सवालों को समेटे हुए है. (Story of Actress Zubeida Begum)
भटकती है जुबैदा की आत्मा
ज़ुबैदा बेगम, 1950 के दशक की एक मशहूर अभिनेत्री थीं. 26 जनवरी, 1952 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी. इस दुर्घटना में उनकी और उनके पति, जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह की जान चली गई थी. हालांकि इसे एक दुर्घटना बताया गया है, फिर भी एक संभावित साजिश की अटकलें लगाई जाती रहीं. ऐसा कहा जाता है कि दशकों बाद भी, उम्मेद भवन पैलेस में अनसुलझे रहस्यों की फुसफुसाहट सुनाई देती है और वहां आज भी जुबैदा की आत्मा भटकती है.
पिता नहीं चाहते थे जुबैदा फिल्मों में करें काम
एक प्रतिष्ठित और संपन्न मुस्लिम परिवार में जन्मी, ज़ुबैदा कलात्मकता से भरपूर माहौल में पली-बढ़ीं. उनके पिता, कासिमभाई मेहता, एक सफल व्यवसायी थे. जुबैदा एक्ट्रेस बनना चाहती थी, लेकिन पिता इससे लिए राजी नहीं थे, जिससे उनके परिवार में तनाव पैदा हो गया. पारिवारिक प्रतिरोध के बावजूद, ज़ुबैदा ने अपने पैशन का फॉलो किया. कथित तौर पर उन्हें फिल्म 'उषा किरण' में कास्ट किया गया था, जहां वह गीता बाली के साथ अभिनय करने वाली थीं. दुर्भाग्य से, यह परियोजना कभी सफल नहीं हुई.
ऐसा कहा जाता है कि उनके पिता, पिस्तौल से लैस होकर, फिल्म के सेट पर पहुंच गए थे और फिल्म की शूटिंग रोक दी थी. इसके तुरंत बाद, उन्होंने एक पारिवारिक मित्र के बेटे से उनकी शादी तय कर दी. ज़ुबैदा की पहली शादी से उनके बेटे खालिद मोहम्मद का जन्म हुआ. लेकिन मनमुटाव की वजह से आखिरकार जुबैदा का तलाक हो गया. महाराजा हनवंत सिंह से उनकी दूसरी शादी उनके लिए एक अहम मोड़ साबित हुई.
बदला जुबैदा का धर्म
हमवंत के परिवार को जुबैदा कुबूल नहीं थी, क्योंकि वह मुस्लिम थीं. रिपोर्ट्स के मुताबिक परिवार की स्वीकृति पाने के लिए 1950 में उनका धर्म परिवर्तन किया गया और इसके बाद उनका नाम विद्या रानी हो गया. लेकिन फिर भी परिवार ने इस रिश्ते को नहीं अपनाया. आखिरकार राजा हमवंत सिंह ने उम्मेद भवन छोड़ दिया और जुबैदा के साथ मेहरानगढ़ के किले में रहने लगे. लेकिन जनवरी 1952 में एक प्लेन क्रैश में हमवंत और जुबैदा की दर्दनाक मौत हो गई.
हनवंत सिंह और जुबैदा के बेटे राव राजा हुकुम सिंह का जोधपुर में 1981 एक वीभत्स अंत हुआ, जब उनकी हत्या कर दी गई. उनके कटे सिर को सड़क पर फेंक दिया गया और शरीर पर 20 से ज्यादा चोटों के निशान मिले थे, जिसने ज़ुबैदा की विरासत में दुख की एक और परत जोड़ दी. राव राजा हुकुम सिंह की मौत अब तक एक रहस्य बनी हुई है.