कभी जिसे उसके रूप की वजह से ठुकरा दिया गया, वही लड़की आगे चलकर हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी डांसर बनी. सितारा देवी- भारतीय कथक की “नृत्य सम्राज्ञी”, ने अपने हुनर और हिम्मत से दुनिया को दिखा दिया कि असली खूबसूरती इंसान के आत्मविश्वास और कला में होती है. उन्होंने न सिर्फ कथक को फिल्मों तक पहुंचाया बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दिलाई. उनके नृत्य ने भारतीय सिनेमा को नया आयाम दिया और उन्हें देश-विदेश में कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. लेकिन जब उन्हें पद्मभूषण देने की घोषणा हुई, तो उन्होंने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उनके योगदान के लिए उन्हें “भारत रत्न” मिलना चाहिए.
Sitara Devi का जन्म 8 नवंबर 1920 को कोलकाता में धनतेरस के दिन हुआ था. उनका नाम धनलक्ष्मी रखा गया. वे बनारस के एक ब्राह्मण परिवार से थीं. उनके पिता पंडित सुखदेव महाराज संस्कृत के विद्वान और कथक गुरु थे, जिनकी नृत्य शैली बनारस और लखनऊ घरानों का मेल थी. जब सितारा 11 वर्ष की थीं, उनका परिवार मुंबई आ गया. यहीं अतिया बेगम पैलेस में उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर और सरोजिनी नायडू जैसे दिग्गजों के सामने नृत्य किया. टैगोर उनके प्रदर्शन से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें “नृत्य सम्राज्ञी” की उपाधि दी.
12 साल की उम्र से उन्होंने फिल्मों में नृत्य करना शुरू किया. उषा हरण (1940), नगीना (1951), रोटी (1938) और वतन जैसी फिल्मों में उनके नृत्य को खूब सराहा गया. 1957 की मदर इंडिया में उन्होंने पुरुष के वेश में होली नृत्य किया. इसके बाद उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली और मंचीय प्रस्तुतियों पर ध्यान केंद्रित किया. बचपन में जब उन्हें “बदसूरत” कहकर माता-पिता ने नौकरानी को सौंप दिया था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि वही लड़की एक दिन सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित डांसर बनेगी. समाज ने उन्हें “तवायफ” कहकर आलोचना की, लेकिन उन्होंने हर ताने को अपनी ताकत बनाया.
उनका निजी जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा. आठ साल की उम्र में पहली शादी टूट गई. बाद में उन्होंने अभिनेता नजीर अहमद खान से शादी की, फिर मशहूर निर्देशक के. आसिफ से, और अंत में बिजनेसमैन प्रताप बरोट से. उनकी चारों शादियां नाकाम रहीं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. प्रताप बरोट से उनका एक बेटा हुआ- रंजीत बरोट, जो आज जाने-माने म्यूज़िशियन हैं और ए.आर. रहमान के साथ काम कर चुके हैं.
सितारा देवी कथक के अलावा भरतनाट्यम, लोक नृत्य और पश्चिमी नृत्य शैलियों में भी माहिर थीं. उन्होंने मधुबाला, रेखा, माला सिन्हा और काजोल जैसी अभिनेत्रियों को कथक सिखाया. अपने जीवन में उन्होंने कथक को नया रूप दिया, महिलाओं को मंच पर आने का साहस दिया, और नृत्य को सम्मान दिलाया. 25 नवंबर 2014 को 94 साल की उम्र में सितारा देवी का निधन हुआ, लेकिन उनका नाम आज भी नृत्य की दुनिया में अमर है. उन्होंने साबित किया कि संघर्ष के बीच जन्मी कहानी भी एक प्रेरणा बन सकती है.