अक्सर फिल्मों में एक सीन ऐसा नजर आता है जब कोई बड़ी घटना होती है. और, उसे कवर करने के लिए पत्रकार टूट पड़ते हैं. उनके अजीबोगरीब सवाल और सनसनी बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने के जुनून को पत्रकारिता के रूप में दर्शाया जाता है. लेकिन बॉलीवुड के कुछ फिल्मकारों ने मीडिया और जर्नलिज्म के पेशे पर आधारित कुछ संजीदा फिल्में भी बनाई हैं. इन फिल्मों में जर्नलिज्म के अच्छे और बुरे दोनों की चेहरों को खुलकर दिखाया गया है. आइए जानते हैं जर्नलिज्म पर आधारित ऐसी ही बॉलीवुड की कुछ फिल्मों के बारे में.
न्यू डेल्ही टाइम्स (New Delhi Times)
1980 के दशक की इस फिल्म में शशि कपूर पत्रकार की भूमिका में हैं. जो एक नेता की हत्या का मामला उजागर करने जाते हैं. इस हत्याकांड को सुलझाते हुए पत्रकार खुद पॉलिटिक्स और मीडिया के जाल में उलझ जाता है. अंत तक आते आते उसका भी खुलासा कर देता है. ये फिल्म पत्रकारिता पर बनी बेहतरीन फिल्मों में से एक है.
कमला (Kamla)
गुजरे दौर की ये ऐसी फिल्म है जो मध्यप्रदेश की एक जनजाति की कड़वी सच्चाई बताती है. एक पत्रकार जो मप्र के भील ट्राइब्स के बीच पहुंचता है. और ये जानकर हैरान रह जाता है कि यहां जिस्मफरोशी का काम किस तेजी से जारी है. इसके बाद पत्रकार वहीं की एक लड़की को आजाद कराता है और इस पूरे मामले का पर्दाफाश करता है. इस फिल्म को मशहूर पत्रकार अरूण शौरी से जुड़े सच्चे किस्से पर आधारित बताया जाता है.
नो वन किल्ड जेसिका (No One Killed Jessica)
जेसिका लाल हत्याकांड पर बनी थी ये फिल्म. जिसमें जितनी साफगोई से पूरे मुद्दे को दिखाया गया उतनी ही गहराई से मीरा नाम की पत्रकार का काम भी दिखाया गया. जो इस हाई प्रोफाइल मर्डर के दोषियों को सजा दिलाने में जेसिका की बहन की मदद करती हैं. फिल्म में विद्या बालन और रानी मुखर्जी लीड रोल में थीं. फिल्म का निर्देशन राजकुमार गुप्ता ने किया था
पेज थ्री (Page 3)
ये ग्लैमर की चकाचौंध भरी दुनिया से जुड़े पत्रकारों की कहानी दिखाती है. कैसे एक पत्रकार उजली दुनिया के काले चेहरों को देखती जाती है. और जब हकीकत खुलती है तब उसे अहसास होता है कि रोशनी के पीछे कितना अंधेरा छुपा है. फिल्म का डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने किया था.
पीपली लाइव
ये ऐसी फिल्म है जो ताजा दौर की पत्रकारिता पर एक तमाचा जड़ती है. किसी की बेबसी कैसे मीडिया की जरूरत बनती है और फिर तमाशा कैसे खड़ा होता है. ये फिल्म कुछ ऐसी ही कहानी कहती है. अक्सर सच की तलाश में मीडिया ऐसा कुछ कर ही गुजरता है जो टीआरपी का खेल बन कर रह जाता है. पत्रकारिता के उसी पहलू पर व्यंग्य करती है ये फिल्म.
रण (Rann)
राम गोपाल वर्मा की रण एक न्यूज चैनल के सीईओ की कहानी है जो अपने सिद्धांतों पर अटल है. पर अपने बेटे और दामाद की बातों में आकर गलत स्टोरी पेश कर देता है. पर अपने परिवार पर भरोसा न करके अंत में एक सच्चे पत्रकार पर भरोसा करता है और पत्रकारिता के उसूलों को जिंदा रखता है. अमिताभ बच्चन, रितेश देशमुख, मोहनीश बहल ने इस फिल्म में पत्रकारों की भूमिका निभाई है.
नायक (Nayak)
पत्रकारिता पर बेस्ड ये अलग ही किस्म की फिल्म है. जिसमें शुरूआत एक नेता के इंटरव्यू से होती है. और इस हद तक पहुंचती है कि इंटरव्यू लेने वाला पत्रकार ही एक दिन का सीएम बन जाता है. एक दिन का सीएम बना पत्रकार क्या क्या बदलाव करता है यही इस फिल्म की कहानी है.
नूर (Noor)
फिल्म कराची यू आर किलिंग मी नॉवेल पर बेस्ड है. जिसमें एक पत्रकार को हल्की फुल्की स्टोरी लिखने का काम दिया जाता है. पर उसके हाथ एक डॉक्टर के काले कारनामों की स्टोरी लग जाती है. जैसे जैसे फिल्म में उतार चढ़ाव आते हैं पत्रकारिता का भी गंभीर रूख नजर आने लगता है.
मद्रास कैफे (Madras Cafe)
फिल्म एक दौर के आतंकवाद की कहानी कहती है. फिल्म में नरगिस फाखरी ने एक पत्रकार का किरदार अदा किया है. नरगिस की ये संजीदा किरदार अदा करने वाली पहली फिल्म मानी जाती है. जिसमें उनकी एक्टिंग का टैलेंट भी कुछ हद तक नजर आया है.
फिर भी दिल है हिंदुस्तानी (Phir Bhi Dil Hai Hindustani)
ये फिल्म पत्रकारिता कम रोमांटिक कॉमेडी ज्यादा है. पर इस रोम कॉम में भी गंभीर पत्रकारिता की झलक नजर आ ही जाती है. शाहरुख खान और जूही चावला दोनों रिपोर्टर हैं. दोनों में बेस्ट बनने की होड़ है. यही होड़ देशभक्ति की जंग में तब्दील हो जाती है. फिल्म मसालेदार है पर पत्रकारों के एक अलग ही पहलू से रूबरू करवाती है.