वहीदा रहमान (Waheeda Rehman) अपने समय में बेहद खूबसूरत और टैलेंटेड एक्ट्रेसेस में गिनी जाती थीं. उन्होंने हिन्दी, तेलुगु, तमिल और बंगाली फिल्मों में काम किया. वह 1950, 1960 और 1970 के दशक की शुरुआत तक फिल्मों की टॉप एक्ट्रेसेस में गिनी जाती थीं. उनके काम के लिए उन्हें फिल्मफेयर, लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए दो फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुके हैं. जब वहीदा फिल्मों में एक्टिव थी, उसी दौरान गुरुदत्त (Guru Dutt) भी टॉप एक्टर डायरेक्टर्स में गिने जाते थे.
गुरुदत्त को ट्रैजिक रोमांटिक फिल्मों के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने निर्देशन और अभिनय दोनों किया. हालांकि उनकी खुद का लाइफ काफी टैजिक बन गई. दरअसल उन्हें उस दौर की एक्ट्रेस वहीदा से प्यार हो गया था और उन्होंने अपनी पत्नी गीता और बेटे को ही नहीं करियर को भी दांव पर लगा दिया. उन्हें वहीदा भी नहीं मिली और उनकी फैमिली लाइफ भी तबाह हो गई. गुरु दत्त ने 1964 में आत्महत्या कर लिया.
उस समय उनका बेटा अरुण आठ साल का था. बड़े होने के बाद अरुण ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके पिता के जीवन के अंत तक उनकी मां गीता और पिता दोनों का कोई रिश्ता नहीं रह गया था. 1963 में दोनों अलग हो गए. हम महबूब स्टूडियो के पास अपनी मां के साथ रहते थे, वह बाहर चले गए और पेडर रोड में रहने लगे. तब तक रिश्ता काफी तनावपूर्ण हो चला था. ऐसी अफवाहें थीं कि गुरु दत्त वहीदा रहमान के करीब थे और कागज के फूल की असफलता से तनाव में रहने लगे थे और वित्तीय संकट से भी गुजर रहे थे. अरुण दत्त ने इस बारे में बताया कि ऐसा नहीं था, उनके पिता ने इस फिल्म के बाद तुरंत 'सुपर-डुपर हिट' चौधवीं का चांद के साथ वापसी की.
उन्होंने बताया कि दरअसल, दोनों के रिश्ते में विश्वास खत्म हो गया था. जब मेरे पिता ने अपना करियर शुरू किया, तब मेरी मां टॉप पर थी. उसने महसूस किया कि उसके साथ कहीं ना कहीं विश्वासघात किया गया है. यह विश्वास का टूटना था, जो आपसी संघर्ष का कारण बना. गीता दत्त और गुरु दत्त का रिश्ता एक गलत मोड़ पर आकर टूट गया था. इधर वह वहीदा के साथ भी अपने रिश्ते को नहीं संभाल पाए.
बता दें कि गुरु दत्त हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के क्लासिक्स जैसे प्यासा, कागज के फूल और साहेब बीबी और गुलाम के लिए जाने जाते हैं. गीता दत्त उनकी मौत के बाद एक नर्वस ब्रेकडाउन से पीड़ित हुईं और आठ साल बाद उनकी मृत्यु हो गई.
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