किताबें बेच खरीदी मुंबई की टिकट, पाइप में रहकर काटे दिन, इस एक्टर को सारा शहर 'लायन' के नाम से जानता था- पहचाना क्या?

Ajit Khan: मुंबई आने की टिकट अपनी किताबें बेचकर खरीदी. यहां आकर पाइप में काटे दिन. गुंडों के होश ठिकाने लगाए तो लोगों मुफ्त में खाना देना शुरू कर दिया. फिर बॉलीवुड में एक्टर से लेकर विलेन तक का सफर किया तय और कहलाए लायन. पहचाना क्या?

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इस हीरो को कहा जाता था बॉलीवुड का लॉयन, पहचाना क्या

Ajit Khan Photo: बॉलीवुड में यूं तो कई खूंखार विलेन आए हैं. लेकिन एक विलेन ऐसा था जिसकी आवाज सुनकर ही लोगों की रूह कांप जाती थी. इस एक्टर के पास स्मार्टनेस भी थी और दमदार एक्टिंग स्किल भी. अपने चालीस साल के करियर में इस एक्टर ने ढेर सारी फिल्में की और विलेन के रूप में इनका करियर काफी शानदार रहा. सूटेड-बूटेड रहने वाले इस एक्टर की एक्टिंग ही थी जिसके चलते इन्हें बॉलीवुड में लॉयन के नाम से जाना जाता था. तो जरा दिमाग के घोड़े दौड़ाइए और बताइए कौन है ये बॉलीवुड का खलनायक. अगर आप फोटो से इसे नहीं पहचान पा रहे हैं तो चलिए हम आपको बता देते हैं.

इस फोटो में हीरो के तौर पर मासूम और प्यारा नजर आ रहा ये एक्टर अपने दौर का मशहूर विलेन रहा है. जी हां बात हो रही है लॉयन के नाम से मशहूर एक्टर अजीत की. अपनी एक्टिंग के साथ-साथ खास अंदाज में बोलने के स्टाइल के चलते इस एक्टर ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी. 1922 में हैदराबाद में अजीत खान का असली नाम हामिद अली खान था. हामिद बिलकुल हीरो माफिक दिखते थे और पढ़ाई छोड़कर हीरो बनने के लिए वो हैदराबाद से भागकर मुंबई आ गए. अजीत ने अपनी पढ़ाई की किताबें बेचकर मुंबई के लिए ट्रेन की टिकट कटवाई. यहां उनको काम तो नहीं मिला बल्कि रहने खाने के भी लाले पड़ गए. वो सीमेंट के बड़े पाइप में रहकर गुजारा करते थे. अपनी कदकाठी के चलते उन्होंने आस पास के गुंडों को सबक सिखाया और इसी कारण लोग उनसे डरने लगे और उनको मुफ्त में खाना पीना मिलने लगा. इसके साथ साथ वो फिल्मों के लिए ट्राई भी करते रहे.

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आखिरकार 1940 में अजीत को छोटे मोटे रोल मिलने शुरू हो गए. 1946 में उनको बतौर हीरो पहली फिल्म मिली जिसका नाम था शाहे मिश्र. इसके बाद उन्होंने जीवनसाथी और आपबीती जैसी फिल्मों में भी रोल किए. हीरो बनने के बाद अजीत ने मधुबाला से लेकर सुरैया जैसी दिग्गज हीरोइनों के साथ काम किया. लेकिन अजीत को हीरो बनकर वो सफलता नहीं मिल पाई जो वो चाह रहे थे. उनकी किस्मत में विलेन बनकर मशहूर होना जो लिखा था.

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साल 1966 में अजीत को सूरज फिल्म में हीरो की बजाय विलेन का रोल मिला. इस फिल्म में हीरो थे राजेंद्र कुमार. पहले इस फिल्म में विलेन के तौर पर प्रेमनाथ को लिया जाना था लेकिन किसी कारण प्रेमनाथ से बात नहीं बनी तो राजेंद्र कुमार ने प्रोड्यूसर को अजीत का नाम सुझाया. इस फिल्म के जरिए वो विलेन के रूप में हिट हुए और फिर उनको विलेन के रोल मिलने लगे.

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मुगले आजम, जंजीर, यादों की बारात, कालीचरण, मिस्टर नटवरलाल, कहानी किस्मत की जैसी फिल्मों में विलेन बनकर वो घर घर में पहचाने जाने लगे. उनका कालीचरण फिल्म का डायलॉग, सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है, खूब फेमस हुआ था. अजीत की खासियत ये थी कि वो विलेन बनकर भी जंचते थे. उनका काला चश्मा, सफेद सूट और हाथ में सिगार लेकर खास अंदाज में बोलना लोगों को काफी पसंद आता था. अपनी कई फिल्मों में अजीत हीरो पर इस कदर भारी पड़े कि हीरो उनके साथ फिल्म करने से पहले कई बार सोचते थे.

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