निवेदिता भट्टाचार्या के लिए आंखें खोलने वाली फिल्म है द वैक्सीन वॉर, पढ़ें इंटरव्यू

द वैक्सीन वॉर एक्ट्रेस निवेदिता भट्टाचार्या ने अपने किरदारों के बारे में NDTV से खास बातचीत की.

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द वैक्सीन वॉर एक्ट्रेस निवेदिता भट्टाचार्या के साथ खास बातचीत
नई दिल्ली:

बालिका वधू, मोही, सात फेरे और गुनाहों का देवता जैसे सीरियल के बाद द वैक्सीन वॉर फिल्म में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस निवेदिता भट्टाचार्या का टीवी के बाद फिल्म और अब वेब सीरीज से गहरा नाता रहा है. उनके दमदार किरदार को फैंस ने काफी पसंद किया है. अलग अलग रोल को खूब सराहा भी है. इन्हीं को लेकर एक्ट्रेस निवेदिता भट्टाचार्या ने NDTV के साथ खास बातचीत में द वैक्सीन वॉर और बॉम्बे मेरी जान को लेकर अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है.  

सवाल- निवेदिता भट्टाचार्य हाल ही में आप द वैक्सीन वॉर और बॉम्बे मेरी जान में नजर आईं, दो अलग-अलग किरदार करने का क्या एक्सापिरियंस था?

जवाब- जैसा कि सब जानते हैं द वैक्सीन वॉर हमारे साइंटिस्ट हैं बलराम भार्गव यह उनकी नॉवल है उस पर निर्धारित है. तो जब फिल्म करने का बुलावा आया तो यह बहुत एक्साइटिंग था क्योंकि अमूमन तौर पर आप एक साइंटिस्ट का किरदार निभा रहे हैं. ऐसा होता नहीं है. यह वैक्सीन की कहानी है, जिससे महामारी अभी हम गुजरे हैं. हम सभी के जीवन में जो कोरोना काल आया है तो उसके चलते वैक्सीन बनी है. अपने देश में बनी है. और अब उस वैक्सीन के नतीजे क्या हैं. उसकी पहुंच केवल भारत में ही नहीं दुनिया तक पहुंच चुकी है. यह कहानी उस पर है कि कैसे हमारे वैज्ञानिकों ने कम वक्त में इतनी सारी दिक्कतों के बावजूद, अपनी पर्सनल लाइफ को अलग रखकर बड़ी चीज सोची और काफी स्ट्रगल के बाद हमने अपनी एक वैक्सीन बनाई. यह एक बहुत अच्छा एक्सपीरियंस था, जिसमें मैने साइंटिस्ट के बात करने का तरीका सीखा क्योंकि यह हमारी भाषा या काम नहीं है. इसे अपनी भाषा का हिस्सा बनाना काफी चैलेंजिंग रहा है. इस फिल्म के दौरान कई चीजों का खुलासा मुझे हुआ क्योंकि हम साइंस की दुनिया में नहीं रहते हैं. उधर क्या चल रहा है हमें इसकी इतनी जानकारी नहीं है. मुझे पता चला कि वैक्सीन बनाने में साइंटिस्ट में 80 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं थीं. यह एक महिलाओं का सशक्तिकरण था. यह मेरे लिए शूट के दौरान पता चला.

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सवाल- द वैक्सीन वॉर और बॉम्बे मेरी जान के कैरेक्टर से कितना अलग था?

जवाब- द वैक्सीन वॉर के कैरेक्टर से बॉम्बे मेरी जान का रोल बिल्कुल अपोजिट है. जैसे डॉक्टर प्रज्ञा है वह पढी लिखी साइंटिस्ट है और सकीना का किरदार बॉम्बे मेरी जान में वह साधारण महिला है. उसने ज्यादा पढ़ाई लिखाई भी नहीं की है. और इसमें हमने जिस परिवार को दिखाया है उसमें जमीन आसमान का अंतर है. सकीना की पढ़ाई लिखाई, रहन सहन आदि. जब सकीना का किरदार निभाने का मुझे मौका मिला तो मैने भाषा पर काम किया कि किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है. वह मेरी रोजमर्रा की भाषा नहीं है. इस पर मुझे काम करना पड़ा. सकीना के कैरेक्टर ेमें काफी परतें हैं. उसके कई अलग अलग पहलू थे. सामने से देखेंगे तो वह एक हाउस वाइफ है. लेकिन इसके पीछे भी बहुत कुछ है. सकीना की जो दुनिया था वह उसका घर है. ज्यादात्तर हम जब सकीना को देखते हैं तो वह घर में ही रहती है और वह घर में ही सीमित है. वह पति और बच्चों का साथ देने की जद्दोजहद में दिखती है. इसी में उसकी ताकत भी है क्योंकि उसे पता है कि यह उसका परिवार है और उसे साथ चलाना है.   

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सवाल- रियल लाइफ पति के साथ रील लाइफ में काम करना कैसा रहा? 

जवाब- जब हम उनके साथ काम कर रहे हैं तो बतौर एक्टर्स हम एक-दूसरे के काम को समझते हैं किरदारों को समझते हैं तो उनके साथ एक सेट पर काम करने का एक्सपीरियंस फैंटास्टिक रहा है. सबको पता है कि वह कितने सक्षम एक्टर हैं तो किसी भी अच्छे एक्टर के साथ काम करना अच्छा ही लगता है. मेरा भी वही था जब मैं केके मेनन के साथ काम कर रही थी. आपस में हमारे जो भी सीन थे और सेट पर हमारा जो तालमेल था. वह बहुत अच्छा था हम जुड़े हुए थे. इसके कारण ऑनस्क्रीन ये फैमिली की तरह कैमरे पर नजर आया. सेट पर जो माहौल है वह घर पर नहीं है.

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सवाल- काम या फैमिली आप किसे पहले चुनती हैं? 

जवाब- काम हम सबके जीवन में अगर फैमिली का सपोर्ट हो तो निखर कर आता है. काम भी आपके जीवन का उतना ही हिस्सा है, जितना की आपका परिवार है. अगर परिवार साथ है तो काम भी चलेगा. इसीलिए काम पहले या फैमिली पहले साथ नहीं आते वह बराबरी पर चलता हैं. यह जीवन का हिस्सा है. आप उसे अलग नहीं कर सकते. मैं कॉलेज के जमाने से काम करती आ रही हूं इसलिए फैमिली का सपोर्ट रहता है तो परिवार या काम के बीच लाइन नहीं खींचती है. 

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सवाल- एक एक्टर के तौर पर वेब सीरीज, फिल्म और टीवी सीरियल में आपके लिए किसमें काम करना सबसे ज्यादा कंफ्टेबल रहा है?
 

जवाब- ये जो तीनो माध्यम हैं इनका अपना एक महत्व और दायरा है. जब मैने टीवी किया तो डेली सोप के जरिए आपका काम रोज दर्शकों तक पहुंच रहा है. टीवी देश के कोने कोने में पहुंचता है. उसकी कहानी लंबी होती है और पता नहीं होता कि कब खत्म होगा. तो उस किरदार की अपनी एक जर्नी होती है, जो कहां खत्म होगी इसका पता नहीं होता. वहीं जब हम फिल्म या वेबसीरीज करते हैं तो कहानी निर्धारित होती है. फिल्म में दो ढाई घंटे की कहानी होती है वेब सीरीज आठ से दस एपिसोड का होता है. तो किरदार की जर्नी शुरु से अंत तक दिख जाती है. बतौर एक्टर आपको पता रहता है कि शुरु कहां से और खत्म कहा हो रहा है. इसमें किरदार का कितना महत्व रहेगा यह पता चल जाता है. इसीलिए मैं एक एक्टर हूं और बतौर एक्टर में प्लेटफॉर्म कोई सा भी हो यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं किस माध्यन के साथ कैसे अडेप्ट करूं. 

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