सुपरस्टार बना था सीरियल किलर, 45 साल पहले बनी इस फिल्म को देख कर, लोगों के हो गए थे रोंगटे खड़े, सेंसर बोर्ड ने ...

दिलचस्प बात यह है कि दोनों फिल्मों के लेखक और निर्देशक भारतीराजा ही थे. यह कहानी काफी हद तक 1960 के दशक के कुख्यात सीरियल किलर रमन राघव से प्रेरित बताई जाती है.

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राजेश खन्ना की इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने कर दिया था बैन
नई दिल्ली:

राजेश खन्ना को हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार कहा जाता है. उनकी हर अदा पर लोग फिदा रहते थे. लेकिन साल 1980 में जब फिल्म ‘रेड रोज' में वो सीरियल किलर बनकर सामने आए, तो फैन्स तक चौंक गए. सेंसर बोर्ड भी इस फिल्म से इतना असहज था कि इसे बैन करने का फैसला ले लिया. रेड रोज असल में तमिल फिल्म सिगाप्पु रोजाक्कल की हिंदी रीमेक थी, जिसमें कमल हासन और श्रीदेवी थे. हिंदी वर्जन में राजेश खन्ना और पूनम ढिल्लन लीड रोल में थे. दिलचस्प बात यह है कि दोनों फिल्मों के लेखक और निर्देशक भारतीराजा ही थे. यह कहानी काफी हद तक 1960 के दशक के कुख्यात सीरियल किलर रमन राघव से प्रेरित बताई जाती है.

रोमांटिक इमेज से बिल्कुल उलट था रोल
राजेश खन्ना के करियर का ये दौर कुछ ढलान पर था. ऐसे में उन्होंने रेड रोज जैसी फिल्म में काम करने का जोखिम उठाया, जो उनकी रोमांटिक इमेज से बिल्कुल उलट थी. फिल्म में उनका किरदार आनंद नाम का एक अमीर लेकिन मानसिक रूप से बीमार बिजनेसमैन था, जो लड़कियों को पहले प्यार के जाल में फंसाता और फिर उनका बेरहमी से कत्ल कर देता.

आनंद की जिंदगी तब मोड़ लेती है जब उसकी मुलाकात शारदा (पूनम ढिल्लन) से होती है. वह शारदा को भी अपने अंदाज से इम्प्रेस करने की कोशिश करता है, लेकिन शारदा शादी से पहले कोई संबंध बनाने से मना कर देती है. दोनों की शादी होती है, और शादी के बाद धीरे-धीरे शारदा को आनंद का असली चेहरा नजर आने लगता है.

सेंसर बोर्ड भी चकरा गया था

फिल्म का विषय इतना बोल्ड था कि सेंसर बोर्ड ने इस पर कड़ा रुख अपनाया. मेकर्स ने ‘ए सर्टिफिकेट' की मांग की थी, लेकिन बोर्ड ने फिल्म को ‘जनता के देखने लायक नहीं' बताकर लाल झंडी दिखा दी. रिवाइजिंग कमेटी ने भी यह फैसला बरकरार रखा. तब निर्माता सीधे सूचना और प्रसारण मंत्रालय तक पहुंचे, जहां से उन्हें आखिरकार फिल्म रिलीज़ करने की मंजूरी मिली.

इस फिल्म के साथ एक और विवाद जुड़ा था – ‘रेड रोज' यानी लाल गुलाब. फिल्म में आनंद हमेशा अपने कोट में एक लाल गुलाब लगाए रखता है. सेंसर बोर्ड के कुछ सदस्यों को इस बात से आपत्ति थी, क्योंकि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी अपने कोट में लाल गुलाब लगाया करते थे. उन्हें लगा कि फिल्म इस प्रतीक का ग़लत इस्तेमाल कर रही है.

ट्रेलर को भी ‘ए सर्टिफिकेट' मिला

फिल्म के ट्रेलर को भी सेंसर बोर्ड ने ‘ए सर्टिफिकेट' दिया था – यह अपने आप में एक अनोखा मामला था. रिलीज़ के बाद भी रेड रोज दर्शकों को खास पसंद नहीं आई. राजेश खन्ना को इस किरदार में देखकर उनके फैन्स असहज हो गए. तमिल वर्जन के स्टार कमल हासन को भी हिंदी रीमेक जंचा नहीं क्योंकि उनकी हिंदी उस समय कमजोर थी. दिलचस्प बात यह है कि यह रोल पहले संजीव कुमार को ऑफर हुआ था, लेकिन आखिरकार यह राजेश खन्ना को दिया गया.

पूनम ढिल्लन भी फिल्म से नाखुश थीं. खास तौर पर उस वक्त जब फिल्म के प्रमोशनल पोस्टर्स में उनकी एक बाथटब फोटो का इस्तेमाल कर लिया गया, जो उन्होंने फिल्म के हिस्से के तौर पर नहीं खिंचवाई थी.

कुल मिलाकर, रेड रोज राजेश खन्ना की सबसे विवादित फिल्मों में से एक रही. न सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अपनी इमेज से उलट किरदार निभाया, बल्कि इसलिए भी कि यह फिल्म सेंसर बोर्ड से टकराकर खाासी चर्चा में आई थी.

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