बॉलीवुड का वो खूंखार खलनायक, डाकू बनने के लिए किताब का लिया सहारा, पहली बार था जब किसी विलेन को ब्रांड एंडोर्स

अमजद खान को गब्बर से लेकर वाजिद अली शाह तक के किरदारों के लिए जाना जाता है. वहीं उनका नाम भारतीय सिनेमा के अमर नायक-खलनायक में शामिल है.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
Amjad Khan: बॉलीवुड के खूंखार विलेन के नाम से मशहूर हुए अमजद खान
नई दिल्ली:

'अरे ओ सांभा… कितने आदमी थे?' ये एक संवाद नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो चुका एक लम्हा है. इस संवाद के साथ पर्दे पर जो चेहरा उभरा, उसने न केवल खौफ पैदा किया बल्कि एक ऐसे कलाकार को जन्म दिया, जिसकी अभिनय की गहराइयों को आज भी सिनेमा प्रेमी याद करते हैं. उस कलाकार का नाम है अमजद खान. 12 नवंबर 1940 को जन्मे अमजद खान, 27 जुलाई 1992 को विदा हो गए, लेकिन उनका अभिनय, उनकी आवाज, उनके संवाद और उनका व्यक्तित्व आज भी जिंदा है, हर उस दर्शक के दिल में, जिसने कभी 'शोले' देखी है या 'शतरंज के खिलाड़ी', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'याराना', 'चमेली की शादी' जैसी फिल्में.

फिल्मी दुनिया में खलनायक के किरदार को जो गहराई अमजद खान ने दी, वो पहले किसी ने नहीं दी थी. उनके पिता जयंत खुद एक प्रतिष्ठित अभिनेता थे. अमजद खान ने अभिनय की बारीकियों को घर में ही सीखा. बतौर बाल कलाकार उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की और धीरे-धीरे रंगमंच से लेकर फिल्मी दुनिया तक, अपने किरदारों में ढलते चले गए.

1975 में आई रमेश सिप्पी की फिल्म 'शोले' में गब्बर सिंह के किरदार ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया. दिलचस्प बात यह है कि इस किरदार के लिए उन्होंने 'अभिशप्त चंबल' नामक किताब पढ़ी थी ताकि वह असली डकैतों की मानसिकता को समझ सकें. गब्बर सिंह के रूप में वह भारतीय सिनेमा के पहले ऐसे विलेन बने, जिसने बुराई को ग्लैमर और शैली दी. एक ऐसा किरदार, जो खुद को बुरा मानता है और उस पर गर्व भी करता है.

'शोले' में उनके संवाद 'कितने आदमी थे?', 'जो डर गया समझो मर गया,' और 'तेरा क्या होगा कालिया' जैसे डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं. गब्बर सिंह का किरदार इतना लोकप्रिय हुआ कि अमजद खान को बिस्किट जैसे प्रोडक्ट के विज्ञापन में भी उसी रूप में दिखाया गया. यह पहली बार था जब किसी विलेन को ब्रांड एंडोर्समेंट के लिए इस्तेमाल किया गया. अमजद खान केवल 'गब्बर' नहीं थे. उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने दर्शकों को गंभीर, हास्य और सकारात्मक भूमिकाओं में भी प्रभावित किया. सत्यजित रे की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी (1977) में नवाब वाजिद अली शाह की भूमिका में उनका शाही ठहराव और सूक्ष्म अभिनय भारतीय कला सिनेमा के लिए एक अमूल्य योगदान था. वहीं, 'मीरा' (1979) में उन्होंने अकबर की भूमिका को जिस गरिमा से निभाया, वह ऐतिहासिक पात्रों के चित्रण में एक मानक बन गया.

'याराना' और 'लावारिस' जैसी फिल्मों में उन्होंने सकारात्मक किरदार निभाए, जबकि 'उत्सव' (1984) में वात्स्यायन के किरदार ने उनके अभिनय की बौद्धिक गहराई को उजागर किया. उनके हास्य अभिनय की मिसाल 'कुर्बानी', 'लव स्टोरी' और 'चमेली की शादी' जैसी फिल्मों में मिलती है, जहां उन्होंने दर्शकों को हंसी के साथ-साथ अपनी अदाकारी से हैरान किया. परदे से बाहर अमजद खान एक बुद्धिमान, संवेदनशील और सामाजिक रूप से सजग व्यक्ति थे. कॉलेज के दिनों से ही वह नेतृत्वकारी व्यक्तित्व रहे और बाद में 'एक्टर गिल्ड' के अध्यक्ष के तौर पर कलाकारों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे. कई बार उन्होंने कलाकारों और निर्माताओं के बीच मध्यस्थता कर समाधान निकाले. एक ऐसा पहलू जो शायद आम दर्शक के सामने नहीं आता, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें अपार सम्मान दिलाता था.

वह एक समर्पित पारिवारिक व्यक्ति थे. उन्होंने 1972 में शायला खान से विवाह किया, जो प्रख्यात लेखक अख्तर उल इमान की बेटी थीं. उनके तीन संतानें, शादाब, अहलम और सिमाब हैं. शादाब खान ने भी पिता की राह पर चलने की कोशिश की, लेकिन अमजद खान जैसी छवि बना पाना शायद किसी के लिए संभव नहीं था.

Advertisement

1980 के दशक में उन्होंने 'चोर पुलिस' और 'अमीर आदमी गरीब आदमी' जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया, लेकिन निर्देशन में उन्हें वैसी सफलता नहीं मिली जैसी अभिनय में. 1976 में एक गंभीर सड़क दुर्घटना के बाद उनकी सेहत प्रभावित हुई. उन्हें दिए गए स्टेरॉयड के कारण उनका वजन बढ़ता गया, जो उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हुआ. अंततः 1992 में 27 जुलाई को हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया. उनकी अंतिम यात्रा में बॉलीवुड के तमाम दिग्गज शामिल हुए. उनकी शवयात्रा जब बांद्रा की गलियों से निकली, तो मानो पूरा हिंदी सिनेमा उनके सम्मान में सिर झुकाए खड़ा था.

Advertisement

आज के दौर में अमजद खान सिर्फ एक अभिनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक युग के रूप में प्रतीत होते हैं—एक ऐसा युग जिसने विलेन को भी वही शोहरत दी जो हीरो को मिलती है. एक ऐसा अभिनेता जिसने स्क्रीन पर अपने भारी कद-काठी और गहरी आवाज से लोगों को डराया भी, हंसाया भी और सोचने पर मजबूर भी किया. अमजद खान अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके संवाद, उनकी छवि और उनका अभिनय हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए हैं. भारतीय सिनेमा के सबसे महान खलनायकों में से एक होने के साथ-साथ, वह एक संवेदनशील अभिनेता, जिम्मेदार नेता और एक बेहतरीन इंसान थे.

Advertisement

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
NCERT का बड़ा फैसला: अब स्कूलों में पढ़ाया जाएगा 'ऑपरेशन सिंदूर' और चंद्रयान मिशन | New Syllabus