- फिल्म 'तन्वी द ग्रेट' एक खास बच्ची की कहानी है जो अपने शहीद पिता का सपना पूरा करने की कोशिश करती है.
- फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले में उतार-चढ़ाव के कारण कहानी कई बार खिंची हुई और लंबी लगती है.
- बोमन ईरानी और नासिर जैसे बड़े कलाकारों के किरदारों को पर्याप्त महत्व नहीं मिला है.
कास्ट – अनुपम खेर, शुभांगी दत्त, नासिर, अरविंद स्वामी, बोमन ईरानी, पल्लवी जोशी, करण टैकर, इयान ग्लैन और जैकी श्रॉफ.
निर्देशक – अनुपम खेर
संगीत – एम. एम. कीरावनी
कहानी:
ये कहानी है तन्वी की. एक खास बच्ची, जो अपने शहीद पिता का सपना पूरा करना चाहती है. उसका जज़्बा, मासूमियत और ज़िद, उसे एक ऐसे सफ़र पर ले जाती है जो इमोशनल भी है और मोटिवेट करने वाला भी.
कमियां
इंटरवल से पहले और बाद में फिल्म कई जगह खिंचती नज़र आती है, जिसकी वजह से ये लंबी लगती है और वैसे भी फिल्म दो घंटे से ज़्यादा की है.
स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले में फिल्म के ग्राफ का ध्यान नहीं रखा गया, क्योंकि फिल्म अचानक एक हाई पॉइंट पर पहुंचती है और फिर लो पॉइंट पर आ जाती है. इंटरवल से पहले तो कई बार लगता है कि यहां इंटरवल हो सकता था, पर फिल्म एक इमोशनल ऊंचाई पर जाकर फिर नीचे गिरती है. और ऐसा ही इंटरवल के बाद भी होता है.
बोमन और नासिर जैसे कलाकार फिल्म में वेस्ट हो जाते हैं क्योंकि इनके पास ज़्यादा कुछ करने को है नहीं.हम भूल जाते हैं कि जब भी किसी रोल में कोई बड़ा नाम आता है तो उससे उम्मीदें बंध ही जाती हैं.
फिल्म के क्लाइमेक्स से पहले जो एंटी-क्लाइमेक्स वाला हिस्सा है और उसके बाद जो कुछ और सीन आते हैं, वो फिल्म को थोड़ा ज़्यादा खींचते हैं.
अंत में आकर फिल्म थोड़ा उलझती है — तन्वी का अपने पापा का सपना पूरा न कर पाने का दुख, फिर अचानक जैकी श्रॉफ की एंट्री और उनके ज़रिए क्लाइमेक्स तक पहुंचना या तन्वी का सपना पूरा करवाना. ये सब थोड़ा हज़म नहीं होता या कहें तो ज़्यादा कन्विंसिंग नहीं लगता। ऐसा लगता है जैसे इस हिस्से की लिखाई जल्दी में की गई है ताकि फिल्म खत्म हो सके.
खूबियां
फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है इसका विषय. हाल ही में हमने इसी से मिलती-जुलती फिल्म तारे ज़मीन पर देखी थी और अब तन्वी द ग्रेट. ये एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे सेना के साथ जोड़ना फिल्म में इमोशन और देशभक्ति दोनों ले आता है.
एम. एम. कीरावनी का म्यूज़िक बहुत ही मेलोडियस है और दिल को सुकून देता है — फिर चाहे वो भजन हो या बाकी गाने। ये फिल्म की थीम के साथ एकदम फिट बैठता है.
यहां मैं फिल्म की गीतकार कौसर मुनीर की भी तारीफ करना चाहूंगा क्योंकि उन्होंने बड़ी खूबसूरती से एक खास बच्चे की सोच को अपने शब्दों में उतारा है और धुनों में पिरोया है. शायद आप आंख बंद करके भी गाना सुनें तो आपको शब्दों से तन्वी का किरदार दिखने लगे.
एक्टिंग की बात करें तो शुभांगी दत्त ने कमाल का काम किया है. उन्होंने पूरी फिल्म में अपने किरदार को बख़ूबी निभाया है.
अनुपम खेर काफी वक़्त बाद कुछ हटकर किरदार में नज़र आए हैं और उन्होंने अच्छा काम किया है. पल्लवी जोशी, अरविंद स्वामी और बोमन का जितना काम है, उतना अच्छा है.
अनुपम खेर के डायरेक्शन की बात करें तो ये ज़रूर कहना पड़ेगा कि उन्होंने बहुत संजीदगी से इस विषय को हैंडल किया है. फिल्म के हर किरदार के इमोशन दर्शकों को एक इमोशनल सफ़र पर ले जाते हैं. आप कहीं मुस्कुराते हैं, कहीं आपकी आंखें नम होती हैं. हां, अगर लिखाई और टाइट होती तो फिल्म और असरदार बन सकती थी.
कुल मिलाकर ये फिल्म दर्शकों को इसके विषय और संदेश की वजह से ज़रूर देखनी चाहिए. यह आपको निराश नहीं करेगी.
रेटिंग – 3.5/5