कस्बों की अपनी जिंदगी होती है. अपनी परेशानियां होती हैं. अपने ख्वाब होते हैं और अपना यूटोपिया होता है. ये ऐसी जगहें होती हैं जहां सपने देखने और उन्हें पूरा करने का माद्दा हर किसी में नहीं होता. लेकिन जो सपने देखकर उन्हें पूरा करने निकल पड़ते हैं फिर उन जैसा भी कोई नहीं होता. इन्हीं सपनों और जज्बों की कहानी है सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव. मालेगांव में सपने हैं, सिनेमा है, दोस्ती है, जिगरी याराना है, कुछ उलझनें हैं और सबसे ऊपर सिनेमा को लेकर जुनून है. रीमा काग्ती ने सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव के जरिये एक ऐसी दुनिया सामने रखी, जिसे दर्शकों के सामने पेश करनी की हिम्मत हरेक डायरेक्टर नहीं कर पाता.
सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव की कहानी आदर्श गौरव, विनीत कुमार सिंह और शशांक अरोड़ा की है. जो फिल्म में मालेगांव के असली पात्रों को निभा रहे हैं. नासिर बने आदर्श वीडियो पार्लर चलाते हैं और एक दिन पाइरेसी की वजह से उस पर छापा पड़ जाता है. फिर वो कुछ अपना करने की योजना बनाते हैं और इस तरह मालेगांव की शोले बनती है और हिट हो जाती है. इसके बाद फिल्म बनाने का सिलसिला शुरू होता है. लेकिन दोस्ती में तकरार भी होती है, फिल्म बनाने के बाद थोड़ा गुरूर भी नजर आता है. कुल मिलाकर जीवन के हर रस इस फिल्म में देखने को मिलते हैं.
सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव कुल मिलाकर रीमा काग्ती की एक अच्छी कोशिश है. मालेगांव के पात्रों को बॉलीवुड तक लाने की अच्छी पहल है. डायरेक्शन भी अच्छा है. लेकिन कहानी में वो फैक्टर मिसिंग हैं जो मालेगांव को और गहराई तक समझा पाते. उसके पात्रों से जोड़ पाते. रीना कागती सिर्फ विनीत कुमार सिंह और शशांक अरोड़ा के कैरेक्टर्स को ही मजबूती के साथ पेश कर पाई हैं. बाकी कैरेक्टर अच्छे हैं, लेकिन कनेक्शन नहीं बन पाता है. अगर 2012 में सुपरमैन ऑफ मालेगांव डॉक्यमेंट्री आपने देखी है तो सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव आपकी कसौटी पर थोड़ी कमजोर साबित हो सकती है.
एक्टिंग के मामले में विनीत कुमार सिंह ने दिखा दिया है कि कलाकार ही बाप होता है. छावा के बाद फिर से विनीत कुमार सिंह ने ध्यान खींचा है. शशांक अरोड़ा ने भी खामोशी के साथ बहुत ही गहरा काम किया है. मालेगांव को याद करने और उसके सिनेमा के जुनून को सैल्यूट करने के लिए ये एक अच्छी फिल्म है.
रेटिंग: 3/5 स्टार
डायरेक्टर: रीमा कागती
एक्टर: आदर्श गौरव, विनीत कुमार सिंह, शशांक अरोड़ा, अनुज सिंह दुहन और रिद्धि कुमार