सनी देओल ने इस फिल्म में लगाए थे 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे, नाम जानते हैं आप ?

हैरानी की बात तो ये है कि 2 घंटे 27 मिनट की इस फिल्म में करीब एक घंटे बाद सनी देओल की एंट्री होती है.

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सनी देओल
नई दिल्ली:

सनी देओल एक्शन के मामले में स्पेशलिस्ट माने गए हैं. जब विलेन पर घूंसे और लात मारने की बात आती है तो उन्हें ही उस्ताद माना जाता है. उन्होंने ऐसी फिल्में भी की हैं जिनमें उनका दुश्मन पाकिस्तान रहा है. 'गदर:एक प्रेम कथा' की शानदार सफलता के बाद उनकी इमेज ऐसी ही बन गई. इसके बाद सनी इंडियन, मां तुझे सलाम, हीरो: लव स्टोरी ऑफ ए स्पाई, जाल: द ट्रैप जैसी कई फिल्में में नजर आए. हाल में उन्होंने अपनी उस इमेज को रिवाइव किया और गदर-2 के साथ स्क्रीन पर धमाल मचा दिया.

दूसरे शब्दों में पाकिस्तान की बात होती तो लोगों को सनी देओल ही याद आते लेकिन क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान विरोधी फिल्मों की एक सीरीज के बाद सनी ने एक फिल्म में एक पाकिस्तानी सेना अधिकारी का रोल किया था? पंजाबी फिल्म मेकर अमितोज मान 2007 में काफिला नाम से अपनी दूसरी हिंदी फिल्म लेकर आए. यह फिल्म अवैध अप्रवासियों के मुद्दे पर आधारित थी. इसमें भारतीयों के एक समूह की कहानी बताई गई है जो इंग्लैंड में स्थानांतरित होने के इच्छुक हैं लेकिन किसी न किसी कारण से वीजा पाने में असमर्थ हैं. अब क्योंकि उनके लिए यूरोपीय देश में जाना बहुत अहम है इसलिए वे अवैध अप्रवासी बनने का फैसला लेते हैं.

हैरानी की बात तो ये है कि 2 घंटे 27 मिनट की इस फिल्म में करीब एक घंटे बाद सनी देओल की एंट्री होती है. इससे पहले काफिला भारतीय यात्रियों पर केंद्रित है. इसमें सुदेश बेरी और अन्य कलाकार शामिल थे. वे ऐसे लोगों से संपर्क करने का इंतजाम करते हैं जो अवैध रूप से विदेशी भूमि पर मानव तस्करी में विशेषज्ञ हैं. तस्करों की प्लानिंग के मुताबिक भारतीयों का समूह रूस जाता है और वहां से कुछ अन्य देशों से होते हुए उन्हें इंग्लैंड पहुंचना है.

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लेकिन उनके सामने एक के बाद एक मुश्किलें आती हैं और एक समय ऐसा आता है जब उनकी जान भी खतरे में पड़ जाती है. तभी सनी देओल सामने आते हैं और उनके रक्षक बन जाते हैं. वह अपना परिचय समीर के रूप में देता है जो लोगों को विदेशों में तस्करी करने में विशेषज्ञ है. वह अलग-अलग देशों के अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकने की सारी तरकीबें जानता है और क्योंकि वह सनी देओल हैं इसलिए वह एक अच्छे फाइटर भी हैं जो अलग-अलग हथियारों का इस्तेमाल करना भी जानते हैं. इसलिए फिल्म में ऐसे कई सीन हैं जहां वह या तो लोगों को पीटते हैं या गोली मार देते हैं.

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बहुत सारे उतार-चढ़ाव (और कुछ मौतों) के बाद भारतीयों के समूह को एहसास हुआ कि दूसरे देश में प्रवास करने का कोई मतलब नहीं है. सनी फिर उन्हें भारत लौटने में मदद करते हैं. इसके लिए वे अफगानिस्तान और फिर पाकिस्तान में उतरते हैं. एक बार जब भारतीय दल पाकिस्तान पहुंचता है तो उन्हें पता चलता है कि सनी एक पाकिस्तानी सेना अधिकारी समीर अहमद खान है. वह किसी वजह से अंडरग्राउंड था. वह दृढ़ता से 'पाकिस्तान पैंदाबाद' (पाकिस्तान हमेशा अमर रहे) का नारा लगाते हैं लेकिन साथ ही भारतीयों और पाकिस्तानियों के बीच कोई अंतर नहीं मानते. आखिर में वह खुशी-खुशी भारतीयों को उनकी मातृभूमि में लौटने में मदद करता है.

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