कुंदन शशिराज की लघु फिल्म ‘द सैडिस्ट' मीडिया की उस सच्चाई को दिखाती है, जो अक्सर टी.वी. स्क्रीन की चमक में छुप जाती है. दशमणि मीडिया द्वारा प्रस्तुत और सुधांशु कुमार द्वारा निर्मित यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं करती, बल्कि सोचने पर मजबूर करती है- क्या हमारा मीडिया सच में समाज का आईना है या उसे तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा है?
फिल्म की शुरुआत एक आम से दृश्य से होती है- एक आदमी रात का खाना खा रहा है और टीवी पर न्यूज़ एंकर अमन देव सिन्हा (दानिश हुसैन) गरमागरम बहस कर रहे हैं. जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, दर्शकों को स्टूडियो के पीछे की कड़वी सच्चाई दिखती है- जहां खबरें बिकती हैं और नैतिकता अक्सर हार मान लेती है. अमन को अपनी पत्नी की मौत की खबर मिलती है, फिर भी वह सनसनीखेज बहस को जारी रखता है. यह दृश्य पत्रकारिता के उस बेरहम चेहरे को उजागर करता है, जहाँ संवेदना और इंसानियत कहीं पीछे छूट जाती हैं.
दानिश हुसैन का किरदार अमन एक ग्रे शेड में है- वह चिल्लाता नहीं, लेकिन शांत और प्रभावशाली भाषा से दर्शकों को अपनी बातों पर यकीन दिला देता है. फिल्म यही बताती है कि कैसे सच्चाई को पेश करने का तरीका ही कभी-कभी सबसे बड़ा झूठ बन जाता है. निर्देशक कुंदन शशिराज का कहना है कि फिल्म समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण और नफरत की जड़ तक जाना चाहती है. उनका मानना है कि कई बार मीडिया ही इस नफरत को हवा देने वाला मुख्य स्रोत बनता है.
कम बजट में बनी इस फिल्म को केवल तीन दिनों में शूट किया गया और पोस्ट-प्रोडक्शन चार महीने में पूरा हुआ. कलाकारों ने बिना फीस के काम किया- यह फिल्म एक जुनून, एक मकसद और बदलाव की चाह से बनी है. ‘द सैडिस्ट' एक जरूरी फिल्म है, जो आज के मीडिया और उसकी जिम्मेदारी पर एक कड़ा सवाल खड़ा करती है. यह फिल्म बताती है कि अगर मीडिया की दिशा नहीं बदली गई, तो समाज को बांटने वाली ताकतें और मजबूत होती जाएंगी.