सोमी अली ने याद किया मनोज कुमार संग मुलाकात का किस्सा, बोलीं- उस दौर में वह समय से बहुत आगे थे

सोमी अली ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक खास वीडियो साझा किया. इस वीडियो में उनके बॉलीवुड करियर के अलग-अलग लुक्स शामिल थे, साथ ही उनकी पसंदीदा फिल्मों में से एक रोटी कपड़ा और मकान का मशहूर गाना 'मैं ना भूलूंगी' भी था.

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सोमी अली ने किया मनोज कुमार को याद
नई दिल्ली:

सोमी अली 90 के दशक की जानी-मानी एक्ट्रेस रह चुकी हैं. सोमी कई हिंदी फिल्मों का हिस्सा रहीं और बाद में सामाजिक कार्यों में सक्रिय हो गईं. सोमी अली ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक खास वीडियो साझा किया. इस वीडियो में उनके बॉलीवुड करियर के अलग-अलग लुक्स शामिल थे, साथ ही उनकी पसंदीदा फिल्मों में से एक रोटी कपड़ा और मकान का मशहूर गाना 'मैं ना भूलूंगी' भी था. सोमी ने पोस्ट में लिखा, "मुझे यह फिल्म और इसके सभी गाने बेहद पसंद हैं. मैंने इसे बचपन में देखा था, लेकिन जब मुझे मनोज अंकल से मिलने और उनके साथ लाहौर और उनकी फिल्मों के बारे में घंटों बात करने का मौका मिला, तो वह समय मेरी जिंदगी के सबसे यादगार पलों में से एक बन गया. हिंदी सिनेमा के सबसे महान फिल्मकारों में से एक के साथ बिताया गया वह समय मैं कभी नहीं भूल सकती".

उन्होंने मनोज कुमार के अनोखे अंदाज की तारीफ करते हुए कहा, "उनकी ज्यादातर फिल्में देशभक्ति पर आधारित होती थीं और उनकी सिनेमैटोग्राफी का स्टाइल किसी और फिल्ममेकर से बिल्कुल अलग था. मैं सभी एक्टर्स और फिल्ममेकर्स को उनकी फिल्में देखने की सलाह दूंगी. उनके हर कैमरा एंगल को देखकर आप हैरान रह जाएंगे, क्योंकि उस दौर में वह समय से बहुत आगे थे. वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे और कहानियों में संदेश देने के साथ-साथ शूटिंग के अनोखे तरीकों के लिए भी जाने जाते थे".

सोमी ने अपने फॉलोअर्स से गाना यूट्यूब पर देखने की अपील करते हुए कहा, "यह गाना यूट्यूब पर देखिए और आप मेरी बात समझ जाएंगे. वह इंडस्ट्री में धरमजी के साथ सबसे अच्छे इंसानों में से एक थे. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. मैं उन्हें और उनकी फिल्ममेकिंग को बहुत याद करती हूं".

आपको बता दें कि मनोज कुमार, जिन्हें 'भारत कुमार' के नाम से भी जाना जाता है, 60 और 70 के दशक में भारतीय सिनेमा में देशभक्ति और सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मों के लिए मशहूर थे. सोमी अली की यह यादें न सिर्फ एक कलाकार की अपने गुरु समान व्यक्ति के प्रति श्रद्धांजलि हैं, बल्कि हिंदी सिनेमा के उस सुनहरे दौर की झलक भी पेश करती हैं, जब कहानियों में भावनाएं और संदेश दोनों बराबर महत्व रखते थे.

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