शोले में गब्बर के डराने वाले किरदार से फेमस हुए एक्टर अमजद खान को कौन नहीं जानता. उनके डायलॉग और दमदार एक्टिंग आज भी फैंस के दिलों में तरोताजा है. कितने आदमी थे...तेरा क्या होगा कालिया, जो डर गया वो समझो मर गया. ये महज डायलॉग्स नहीं बल्कि अमजद खान के करियर को परिभाषित करने वाले पल थे. हिंदी सिनेमा जगत को शोले के रूप में एवरग्रीन फिल्म मिली तो गब्बर के तौर पर अमजद खान जैसा खलनायक भी. लेकिन क्या आपको पता है कि विलेन के रोल में आज पहचाने जाने वाले एक्टर अमजद खान को 39 साल पहले आई फिल्म के लिए बेस्ट कॉमेडियन का अवॉर्ड मिला था. नहीं तो आइए हम आपको बताते हैं.
अमजद खान की यह फिल्म थी 1985 में आई मां कसम. इसके लिए उन्हें बेस्ट कॉमेडियन के फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया था. इसके अलावा भी एक फिल्म उनकी कॉमिक टाइमिंग को लेकर काफी पसंद की जाती है और वो है चमेली की शादी, जिसमें उन्होंने वकील की भूमिका निभाई थी. जो लोग नहीं जानते उन्हें बता दें कि अमजद को विरासत में एक्टिंग मिली. उनके पिता जाने माने कलाकार जयंत थे. जयंत बंटवारे के बाद पेशावर से मुंबई शिफ्ट हो गए थे. अमजद ने लगभग 20 साल के करियर में 130 से अधिक फिल्मों में काम किया. 27 जुलाई 1992 में 'गब्बर' अमजद खान दुनिया को अलविदा कह गए.
भारत में अमजद खान का जन्म हुआ. शुरुआती शिक्षा सेंट एंड्रयूज हाई स्कूल बांद्रा में हुई. इसके बाद उन्होंने आरडी नेशनल कॉलेज से पढ़ाई की. अमजद ने कम उम्र में ही थियेटर का रूख कर लिया. उन्होंने पिता जयंत के साथ अपनी पहली फिल्म 11 साल की उम्र में की, जिसका नाम नाजनीन (1951) था. इसके बाद वह कई फिल्मों में नजर आए. लेकिन साल 1975 में आई रमेश सिप्पी की फिल्म शोले से उन्हें अलग पहचान मिली. विलेन गब्बर सिंह का किरदार निभाकर वह रातों-रात हिंदी सिनेमा में छा गए. इसके बाद अमजद खान ने शतरंज के खिलाड़ी (1977), हम किसी से कम नहीं (1977), गंगा की सौगंध (1978), देस परदेस (1978), दादा (1979), चंबल की कसम (1980) , नसीब (1981), सत्ते पे सत्ता (1982), याराना (1981) और लावारिस (1981) जैसी फिल्मों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.