जब राज कपूर ने दी एक लाइन और शैलेंद्र ने बहा दिया अपना दर्द, लिखा इतिहास का सबसे इमोशनल गाना

shailendra tragic story: फिल्म इंडस्ट्री में शैलेंद्र को एक ऐसे गीतकार के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने कविता को गीतों के रूप में ढाला और जिंदगी की सच्चाइयों को बेहद सहजता से शब्दों में पिरोया.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
Shailendra Tragic Story Behind Song Jeena Yahan Marna Yahan: शैलेंद्र हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के सबसे प्रसिद्ध गीतकारों में से एक थे
नई दिल्ली:

शैलेंद्र हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के सबसे प्रसिद्ध गीतकारों में से एक थे. उनका जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) हुआ था. साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले शैलेंद्र ने अपनी गहरी सोच, सरल मगर असरदार शब्दों और भावनाओं से भरे गीतों के जरिए फिल्मी दुनिया में अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने राज कपूर के साथ मिलकर कई यादगार गीत दिए, जिनमें "आवारा हूं," "मेरा जूता है जापानी," और "दिल का हाल सुने दिलवाला" जैसे सदाबहार गाने शामिल हैं. शैलेंद्र के गीत आम आदमी की संवेदनाओं से जुड़ते थे, यही वजह है कि उनके लिखे शब्द हर तबके के लोगों के दिलों को छू जाते थे.

फिल्म इंडस्ट्री में Shailendra को एक ऐसे गीतकार के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने कविता को गीतों के रूप में ढाला और जिंदगी की सच्चाइयों को बेहद सहजता से शब्दों में पिरोया. उन्होंने न सिर्फ रोमांटिक और जोशीले गीत लिखे, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी अपने शब्दों के जरिए पर्दे पर उतारा. उनका पूरा नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेंद्र था. आज हम उनके एक सदाबहार गाने "जीना यहां मरना यहां" की बात करेंगे. इसे उन्होंने राज कपूर के लिए लिखा था. इस गाने से जुड़ा एक मजेदार किस्सा है. इसमें जो दर्द है, वो असल में शैलेंद्र ने अपने जीवन में झेला था.

भारतीय सिनेमा के इतिहास के सबसे प्रतिष्ठित गीतों में से एक, "जीना यहां मरना यहां," 1970 की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' से है. एक फिल्म की असफलता के बाद शैलेंद्र ने इसे लिखा था. इसका जिक्र गीतों का जादूगर: शैलेंद्र किताब में है. इसे ब्रज भूषण तिवारी ने लिखा है. दरअसल, 1966 में शैलेंद्र ने अपनी पहली और आखिरी फिल्म 'तीसरी कसम' का निर्माण किया था. उन्हें इस फिल्म से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन यह बॉक्स-ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई. फिल्म ने भले ही राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, पर इसकी व्यावसायिक विफलता ने शैलेंद्र को आर्थिक और भावनात्मक रूप से तोड़ दिया. वे भारी कर्ज में डूब गए और गहरे सदमे में थे.

इसी मुश्किल समय में उनके करीबी दोस्त राज कपूर ने उनसे अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के लिए एक गीत लिखने का अनुरोध किया. राज कपूर, जो शैलेंद्र के काव्यात्मक मन को अच्छी तरह समझते थे, एक ऐसा गीत चाहते थे जो फिल्म की आत्मा बने. जब शैलेंद्र राज कपूर से मिलने आए, तो वे बहुत थके हुए और परेशान लग रहे थे. राज कपूर ने उन्हें बिठाया और गाने की थीम समझाई. गाने को एक जोकर के जीवन के बारे में होना था, जिसे अपने अंदर के दर्द और दुख के बावजूद दर्शकों के लिए हमेशा मुस्कुराते रहना पड़ता है. यह गीत जीवन, मृत्यु और एक कलाकार के अस्तित्व के सच्चे अर्थ का सार होने वाला था.

शैलेंद्र ने खामोशी से सब कुछ सुना. राज कपूर ने देखा कि वे आज कुछ अधिक शांत थे. राज कपूर ने उन्हें गाने की शुरुआती लाइन दी: "जीना यहां मरना यहां." शैलेंद्र, जो अभी भी गहरी सोच में डूबे थे, इस लाइन को लेते हैं और एक ही प्रवाह में पूरा गाना लिख डालते हैं. जब उन्होंने कागज राज कपूर को थमाया, तो राज कपूर चकित रह गए. ये सिर्फ शब्द नहीं थे, बल्कि एक टूटे हुए इंसान की आत्मा की गहरी अभिव्यक्ति थी. "कल खेल में हम हों न हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा. भूलोगे तुम, भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा. होंगे यहीं अपने निशां."

‘जोकर' के लिए लिखी गई इन पंक्तियों में शैलेंद्र ने अपने वास्तविक संघर्षों को भी बयां कर दिया था. उन्होंने इसे अपने ही दर्द और निराशा की भावनात्मक अभिव्यक्ति के रूप में लिखा था. उन्होंने 'तीसरी कसम' की असफलता और अपनी वित्तीय परेशानियों से मिली पीड़ा को इस सुंदर कविता में उड़ेल दिया था.

Advertisement
Featured Video Of The Day
SIR 2025: SIR के कौन से 12 कागज तैयार रखने हैं? | ECI Guidelines 2025 | Khabron Ki Khabar