राजेश खन्ना के लिए लिखी गई स्क्रिप्ट,अमिताभ ने की रिजेक्ट, इस फिल्म से चमक गई थी अनिल कपूर की किस्मत, 2 करोड़ में बनी फिल्म ने कमाए 10 करोड़, चीन में भी बंपर कमाई

शेखर कपूर ने 1987 में बोनी कपूर और सुरिंदर कपूर द्वारा निर्मित एक फिल्म का निर्देशन किया था. इस फिल्म को सलीम-जावेद ने लिखा था. यह फिल्म व्यावसायिक रूप से सफल रही और  बॉक्स ऑफिस पर साल की दूसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन गई.

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श्रीदेवी की इस फिल्म में अनिल कपूर के साथ बनी थी जोड़ी
नई दिल्ली:

शेखर कपूर ने 1987 में बोनी कपूर और सुरिंदर कपूर द्वारा निर्मित एक फिल्म का निर्देशन किया था. इस फिल्म को सलीम-जावेद ने लिखा था. यह फिल्म व्यावसायिक रूप से सफल रही और  बॉक्स ऑफिस पर साल की दूसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन गई. 2 करोड़ रुपये में बनी फिल्म ने 10 करोड़ रुपए की कमाई की. यह चीन में भी हिट हुई थी. इस फिल्म में लीड एक्टर्स को काफी पसंद किया गया. हम बात कर रहे हैं कल्ट क्लासिक मिस्टर इंडिया की, जिसमें अनिल कपूर, श्रीदेवी और अमरीश पुरी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था. मोगैम्बो की भूमिका में अमरीश पुरी को खूब वाहवाही मिली और उनका डायलॉग भी काफी पसंद किया गया.  इस फिल्म से अनिल को स्टारडम मिला, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह इस भूमिका के लिए पहली पसंद नहीं थे?

मिस्टर इंडिया में अनिल कपूर पहली पसंद नहीं थे

रिपोर्ट्स के मुताबिक मिस्टर इंडिया में लीड रोल के लिए पहले राजेश खन्ना के नाम पर विचार किया गया था. वास्तव में, सलीम-जावेद ने उन्हें ध्यान में रखते हुए स्क्रिप्ट लिखी थी. हालांकि, एक साल बाद उन्हें लगा कि वह इस किरदार के लिए सही नहीं हैं. इसलिए, उन्होंने किसी और से संपर्क करने का फैसला किया. राजेश खन्ना के बाद एक और सुपरस्टार को यह भूमिका ऑफर की गई, लेकिन आखिरकार यह अनिल कपूर को मिल गई. सलीम-जावेद ने स्क्रिप्ट के साथ अमिताभ बच्चन से भी संपर्क किया था.

अमिताभ बच्चन को स्क्रिप्ट पसंद आई, लेकिन वे सुपरहीरो जॉनर को लेकर निश्चित नहीं थे. इसलिए, उन्होंने कथित तौर पर फिल्म को अस्वीकार कर दिया. अमिताभ बच्चन के अस्वीकार करने के बाद स्क्रिप्ट बोनी कपूर के पास गई और उन्होंने हीरो की भूमिका के लिए अपने भाई का नाम सुझाया. अनिल को भी स्क्रिप्ट बढ़िया लगा और वे तुरंत इसे करने के लिए सहमत हो गए.

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मिस्टर इंडिया एक बड़ी सफलता था. निर्देशक और कलाकारों को इस  फिल्म से काफी फायदा हुआ.  हिंदी सिनेमा में अपनी दुर्लभ सुपरहीरो शैली के लिए एक मील का पत्थर बन गई, जिसके बाद बाद के वर्षों में कई भारतीय फ़िल्में बनीं. इसे तमिल में एन रथथिन रथमे (1989) और कन्नड़ में जय कर्नाटक (1989) के नाम से बनाया गया. 

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