मलयालम सिनेमा में कई महान एक्टर्स हुए, लेकिन जब बेहतरीन कलाकारों की लिस्ट बनती है, तो कुछ नाम सबसे ऊपर दिखाई देते हैं. इन्हीं में से एक थे सत्यन, जिन्हें बड़े सम्मान से “सत्यन मास्टर” कहा जाता था. उन्होंने अपनी अनोखी, सधी हुई अभिनय शैली से न सिर्फ दर्शकों को जीता, बल्कि आने वाली पीढ़ियों—मोहलाल और ममूटी जैसे एक्टर्स के लिए एक मजबूत नींव भी रखी.
40 साल की उम्र में मिला फिल्मों का पहला बड़ा मौका
9 नवंबर 1912 को चेरुविलाकाथु वीटिल मैनुअल सत्यनेसन नादर के रूप में जन्मे सत्यन ने एक्टिंग से पहले कई काम किए जैसे क्लर्क, टीचर, ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार मेजर और पुलिस सब-इंस्पेक्टर. स्कूल के दिनों से किए गए थिएटर के एक्सपीरियंस, ने उन्हें एक्टिंग में मजबूत बनाया. हालांकि उनकी पहली फिल्म त्यागसीमा रिलीज़ नहीं हो सकी, लेकिन 1952 में फिल्म आत्मा साखी से उनकी शुरुआत हुई. फिल्म निर्माताओं ने यहीं से उनका नाम बदलकर “सत्यन” रख दिया.
रियलिस्टिक एक्टिंग के पहले सितारे
उस दौर में जहां ज्यादातर कलाकार थिएटर बेस्ड, ओवर-ड्रामेटिक स्टाइल में एक्टिंग करते थे, सत्यन ने सादगी, गहराई और बिना ओवर ड्रामा के एक्टिंग से दर्शकों को चौंका दिया. उनकी परफॉर्मेंस में एक ऐसी नेचुरल क्वालिटी थी जो बेहद नई और ताज़गी भरी थी.
नीलक्कुयिल, पुथिया अकसम, मूडुपदम, डॉक्टर, ओदायिल निन्नु, चेम्मीन, अश्वमेधम, यक्षी जैसी कई फिल्मों में उन्होंने ऐसे किरदार निभाए जो खासकर कामकाजी लोगों की भावनाओं और संघर्षों को ईमानदारी से सामने लाते थे.
साथी कलाकारों के बीच भी सबसे अलग
प्रेम नज़ीर, शीला, शारदा, मधु और कोट्टाराक्कारा जैसे महान कलाकारों के बीच भी सत्यन की एक्टिंग की एक अलग चमक दिखाई देती थी. उनकी आंखों की भाषा, बोलने का तरीका लोगों को खूब पसंद आता था.
सिर्फ 19 साल के करियर में 150 फिल्में
करीब दो दशकों के फिल्मी सफर में सत्यन ने 150 फिल्मों में काम किया. वे केरल राज्य फिल्म पुरस्कार पाने वाले पहले कलाकार थे. 1969 में आई फिल्म कडलपालम और 1971 में आई फिल्म करकनकदल के लिए उन्हें यह सम्मान मिला.
बीमारी में भी काम के प्रति अटूट समर्पण
ल्यूकेमिया से जूझते हुए भी वे सेट पर समय से पहुंचते थे और पूरी ईमानदारी से एक्टिंग करते थे. कई बार शूटिंग के दौरान उनकी नाक से खून बहने लगता था, लेकिन वे दर्द छिपाकर चुपचाप अस्पताल चले जाते थे.
एक ऐसा ही एक्सपीरियंस शेयर करते हुए, दिग्गज अदाकारा शीला, जिनके साथ सत्यन ने सबसे ज्यादा काम किया, ने मातृभूमि को बताया, "अनुपवंगल पालीचाकल की शूटिंग चल रही थी. मैंने सफेद साड़ी पहनी हुई थी. रात का एक सीन था जहां सत्यन एक पेड़ के नीचे मेरी गोद में सिर रखकर बातें कर रहे थे. शॉट के बाद, जब वह उठे, तो मेरी साड़ी खून से सनी हुई थी. जब मैंने देखा, तो सत्यन सर की नाक से लगातार खून बह रहा था. कई लोगों ने बताया कि उन्हें ल्यूकेमिया है. लेकिन तब हमें एहसास हुआ कि यह कितना गंभीर था. वह अकेले अस्पताल गए. वह अपने साथ किसी को नहीं ले गए. मैं सत्यन सर का चेहरा कभी नहीं भूलूंगी जब उन्होंने गीले कपड़े से खून पोंछा, एक हाथ से स्टीयरिंग व्हील को संभाला और गाड़ी चलाकर चले गए."
सत्यन की याद में लिखे एक श्रद्धांजलि लेख में, प्रसिद्ध लेखक-फिल्म निर्माता एमटी वासुदेवन नायर ने लिखा था, "मैंने सत्यन को एक स्टार के रूप में नहीं देखा. उनका व्यवहार किसी मैटिनी आइडल से बिल्कुल अलग था. सांवला रंग, छोटा शरीर, बेढंगे अंग, छोटी उंगलियाँ . भारतीय सिनेमा में एक एक्टर से जिस किसी चीज की भी उम्मीद थी, वह सब उनमें नहीं था. लेकिन एक सच्चे अभिनेता के रूप में उनमें बहुत ज्यादा टैलेंट था. इसलिए, वे सिनेमा में आए, एक्टिंग की और दर्शकों और एक युग को जीत लिया."
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सत्यन मलयालम सिनेमा के पहले रियलिस्ट और प्रभावशाली अभिनेताओं में से थे, जिन्होंने सादगी और गहराई से एक्टिंग की परिभाषा बदल दी. बीमारी के अंतिम दिनों में भी उनका समर्पण और एक्टिंग का जुनून उन्हें सदाबहार महान कलाकारों में शुमार करता है.
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19 की उम्र में किया डेब्यू कहलाए 'रियलिस्टिक एक्टिंग के पहले सितारे'
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