सीधे-सादे गार्ड से डाकू बनने की कहानी थी संजीव कुमार की फिल्म ‘अनोखी रात’, फिल्मफेयर में था जलवा, गानों ने जीता था फैंस का दिल

साल 1968 में एक फिल्म आई थी अनोखी रात. फिल्म को असित सेन ने डायरेक्ट किया था. असित सेन ममता, खामोशी और सफर जैसी फिल्मों के लिए लोकप्रिय रहे हैं. असित सेन को संवेदनशील विषयों पर फिल्में बनाने के लिए पहचाना जाता रहा है.

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सीधे-सादे गार्ड से डाकू बनने की कहानी थी संजीव कुमार की फिल्म ‘अनोखी रात’
नई दिल्ली:

साल 1968 में एक फिल्म आई थी अनोखी रात. फिल्म को असित सेन ने डायरेक्ट किया था. असित सेन ममता, खामोशी और सफर जैसी फिल्मों के लिए लोकप्रिय रहे हैं. असित सेन को संवेदनशील विषयों पर फिल्में बनाने के लिए पहचाना जाता रहा है. अनोखी रात भी ऐसी ही एक फिल्म है. अनोखी रात में संजीव कुमार, जाहिदा हुसैन, परीक्षित साहनी, अरूणा ईरानी और मुकरी लीड रोल में हैं. फिल्म की कहानी कुछ ऐसी है जिसने देखने वालों को झकझोर रख दिया. कहानी डाक बंगले के गार्ड बलदेव सिंह और उसके हालात से जुड़ी है. किस तरह एक सीदा-साधा गार्ड डाकू बन जाता है, उसे फिल्म में दिखाया गया है.

इस दिल छू लेने वाली कहानी के साथ ही इसके मार्मिक संगीत ने अनोखी रात के लिए सोने पर सुहागा का काम किया. 
फिल्म का गाना ‘ओह रे ताल मिले नदी के जल में' बहुत लोकप्रिय रहा. इसका संगीत रोशन का था और इसके लिरिक्स लिखे थे इंदीवर ने. इसे मुकेश ने अपनी मखमली में आवाज में गाया था. मुकेश की गायकी का एक अलग जादू रहा है. उनकी आवाज भावों के समंदर में गोते लगाने को मजबूर कर देती है. यह गाना भी उसी की मिसाल है. यह गाना दिखाता है कि किस तरह सधी हुई गायकी और साधारण मगर दिल में उतर जाने वाली शायरी जादुई असर कर सकती है. यह हिंदी सिनेमा के इतिहास का ऐसा गाना है जो हर समय में प्रासंगिक रहा है.

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रोशन का संगीत हमेशा ऐसा रहा जो कुछ हटकर होता है. इसकी झलक अनोखी रात के ‘ओह रे ताल मिले नदी के जल में' भी देखने को मिलती है. अनोखी रात रोशन के निधन के बाद रिलीज हुई. लेकन इसके संगीत ने दर्शकों पर अपना ऐसा जादू चलाया जो 54 साल बाद आज भी कायम है.

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अनोखी रात का उस साल फिल्मफेयर पुरस्कारों में भी जबरदस्त जलवा रहा. फिल्म ने बेस्ट आर्ट डायरेक्शन, बेस्ट सिनेमैटोग्राफर, बेस्ट स्क्रीनप्ले और बेस्ट डायलॉग के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीते.
 

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