बॉलीवुड में सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी ने जिस तरह अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बनाया, वही जादू उन्होंने 80 के दशक में अनिल कपूर के करियर पर भी दिखाया. बहुत कम लोग जानते हैं कि इन दोनों दिग्गज लेखकों के अलग होने से ठीक पहले उन्होंने एक ऐसी फिल्म लिखी थी, जिसने अनिल कपूर को रातों-रात स्टार बना दिया था. यह फिल्म थी- मिस्टर इंडिया. 1987 में रिलीज हुई ‘मिस्टर इंडिया' सलीम–जावेद की आखिरी फिल्म थी, क्योंकि इसी साल दोनों अलग हो गए थे. लेकिन इससे पहले उन्होंने हिन्दी सिनेमा को एक ऐसी सुपरहीरो फिल्म दी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया.
इस फिल्म मेंअनिल कपूर का अदृश्य हो जाने वाला किरदार दर्शकों को इतना पसंद आया कि फिल्म रिलीज के कई बाद तक दर्शक सिनेमाघर आए. विकिपीडिया के मुताबिक, ‘मिस्टर इंडिया' लगभग 3.8 करोड़ रुपये के बजट में बनाई गई थी और फिल्म ने वर्ल्डवाइड करीब 10 करोड़ रुपये का कारोबार किया था. उस समय यह कमाई बेहद बड़ी मानी जाती थी. यही वजह है कि यह 1987 की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी.
फिल्म में अनिल कपूर के साथ श्रीदेवी ने शानदार अभिनय किया, जबकि अमरीश पुरी का 'मोगैम्बो खुश हुआ' डायलॉग आज तक बॉलीवुड का सबसे आइकॉनिक डायलॉग माना जाता है. कहानी एक ऐसे युवक अरुण वर्मा (अनिल कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अनाथ बच्चों का पालन-पोषण करते-करते आर्थिक तंगी में फंस जाता है. इसी दौरान उसे एक रहस्यमयी घड़ी मिलती है, जो उसे अदृश्य बनने की शक्ति देती है. यही सुपरपावर उसे मोगैम्बो की बुरी योजना के खिलाफ लड़ने की ताकत देता है.
'मिस्टर इंडिया' सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उस दौर की सबसे बड़ी फैमिली एंटरटेनर बनी. इसने अनिल कपूर को नई पहचान दी और उन्हें 80 के दशक के सुपरस्टार्स की पहली पंक्ति में खड़ा कर दिया.