Saadat Hasan Manto: उर्दू में दो बार फेल हुए थे मंटो, शराब की बोतल की खातिर लिख देते थे कहानी

Saadat Hasan Manto: उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो की कहानियां समाज के दोगलेपन पर करारा तमाचा मारी करती थीं, तभी तो उनकी प्रासंगिकता आज भी कायम है. आइए जानते हैं मंटो के बारे में कुछ खास बातें

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नई दिल्ली:

सआदत हसन मंटो की कहानियां जिस तरह दोगले समाज के मुंह पर तमाचा मारती नजर आती हैं, उसी तरह उनकी जिंदगी बेबाकी और बिंदासपन की मिसाल रही है. सआदत हसन मंटो आज से 68 साल पहले दुनिया को अलविदा कह गए थे लेकिन आज भी वे अपने अफसानों की वजह से पॉपुलैरिटी के मामले में लोकप्रिय हैं. सआदत हसन मंटो के अफसाने आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय हुआ करते थे. यही नहीं आज के दौर में तो वो और भी मौजूं लगते हैं. सआदत हसन मंटो की आज 68वीं पुण्यतिथि है. 2018 में उन पर 'मंटो' नाम से फिल्म भी आई जिसे नंदिता दास ने डायरेक्ट किया था और नवाजुद्दीन सिद्दीकी इसमें मंटो के रोल में नजर आए थे.  मंटो की लोकप्रिय कहानी 'टोबा टेक सिंह' पर केतन मेहता ने फिल्म बनाई और इसमें लीड रोल में पंकज कपूर ने एक्टिंग की थी.

सआदत हसन मंटो की जिंदगी
मंटो का जन्म 11 मई, 1912 को लुधियाना के एक बैरिस्टर के परिवार में हुआ था. मंटो कश्मीरी मूल के थे और उन्हें इस बात का बहुत नाज भी थी. सआदत हसन मंटो ने पढ़ने की शुरुआत रूसी लिटरेचर से की थी. सआदत हसन मंटो ने 22 कहानी संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटकों की पांच सीरीज, रेखाचित्र के अलावा निबंध भी लिखे. सआदत हसन मंटो ने हिंदी सिनेमा में काम किया और अशोक कुमार उनके दोस्त थे. सआदत हसन मंटो पर 6 बार अश्लीलता के आरोप लगे लेकिन उन्हें कभी भी सजा नहीं सुनाई गई. ये मुकदमे 'बू', 'काली शलवार','ऊपर-नीचे', 'दरमियां', 'ठंडा गोश्त', 'धुआं' पर मुकदमे चले. सआदत हसन मंटो का निधन 18 जनवरी, 1955 को हुआ था.

सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) के बारे में दिलचस्प बातें
सआदत हसन मंटो की शराब की लत की वजह से उन्हें बहुत संघर्ष देखना पड़ा. मंटो की शराब की लत का फायदा संपादक भी उठाते थे. संपादक कई बार मंटो को एक शराब की बोतल का लालच देकर कहानी लिखवा लेते थे. मंटो को उनके नेचर की वजह से लोग टॉमी बुलाते थे और मंटो मैट्रिक में उर्दू में दो बार फेल भी हुए थे. मंटो कोई भी कहानी लिखने से पहले 786 लिखते थे. सोहराब मोदी की “मिर्जा गालिब” की कहानी मंटो ने ही लिखी थी. “मिर्जा गालिब” को 1954 के नेशनल फिल्म अवार्ड से नवाजा गया था. मंटो को तांगे की सवारी करना बेहद पसंद था और वे तांगे में हमेशा पीछे की ओर बैठते थे. यही नहीं, मंटो एक ही सिटिंग में पूरी कहानी लिख देते थे.

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