रणदीप हुड्डा ने इस रोल के लिए घटाया 30 किलो वजन, वायरल तस्वीर में एक्टर को पहचानना हुआ मुश्किल

रणदीप हुड्डा ने बताया था कि उन्होंने खुद को उस सेल में बंद करने की कोशिश की जहां सावरकर 11 साल रहे लेकिन रणदीप 20 मिनट भी नहीं बिता पाए.

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रणदीप हुड्डा ने इस फिल्म के लिए कड़ी मेहनत
नई दिल्ली:

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के साथ रणदीप हुड्डा का सफर साल 2001 में शुरू हुआ. लेकिन उन्हें असल पहचान मिली 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई', 'साहेब, बीवी और गैंगस्टर', 'हाईवे', 'सरबजीत' जैसी दूसरी फिल्मों से. फिलहाल वह अपनी आने वाली हिस्टॉरिकल बायोपिक 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' की रिलीज की तैयारी कर रहे हैं जो उनके डायरेक्शन में बनी पहली फिल्म भी है. इसमें उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर का किरदार निभाया है. कुछ समय पहले एक्टिविस्ट के पोते ने रणदीप की परफॉर्मेंस और लुक की काफी तारीफ की थी.

वीडी सावरकर के पोते ने 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' में उनके किरदार की तारीफ की

विनायक दामोदर सावरकर के पोते, रंजीत सावरकर ने हाल ही में एएनआई से बात की और जिस तरह से रणदीप हुड्डा ने उनके दादा का रोल निभाया है उस पर अपने विचार रखे. हाईवे एक्टर की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा, "रणदीप हुड्डा के साथ मेरी कई बार चर्चा हुई. उन्होंने यह फिल्म इतनी मेहनत से बनाई है कि उन्होंने 30 किलो वजन कम किया है."

सावरकर ने यह भी कहा, "फिल्म एक ऐसा मीडियम है जिसके जरिए इतिहास को नई पीढ़ी की तरफ ले जाया जा सकता है. मुझे उम्मीद है कि उनके और दूसरे क्रांतिकारियों के बारे में और फिल्में बनेंगी."

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रणदीप हुड्डा ने खुलासा किया कि उन्होंने वीर सावरकर की बायोपिक की तैयारी के लिए खुद को बंद कर लिया था

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करीब दो हफ्ते पहले, 26 फरवरी को दिवंगत राजनेता वीर सावरकर की पुण्य तिथि पर हुड्डा ने वीर सावरकर के सम्मान में तस्वीरों की एक सीरीज जारी की थी. कैप्शन में उन्होंने यह भी खुलासा किया कि राजनेता और कार्यकर्ता किस दौर से गुजरे रहे होंगे यह महसूस करने के लिए सेल में रहना जरूरी था.

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उन्होंने लिखा, “आज भारत माता के महानतम पुत्रों में से एक की पुण्य तिथि है. नेता, निडर स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, दार्शनिक और दूरदर्शी #सावतंत्र्यवीरसावरकर. एक ऐसा व्यक्ति जिसकी प्रचंड बुद्धि और प्रचंड साहस ने अंग्रेजों को इतना डरा दिया कि उन्होंने उसे दो जन्मों (50 वर्ष) के लिए कालापानी की इस 7 बाई 11 फुट की जेल में बंद कर दिया. उनकी बायोपिक की रेकी के दौरान, मैंने खुद को इस कोठरी के अंदर बंद करने की कोशिश की, यह महसूस करने के लिए कि उन पर क्या गुजरी होगी. मैं 20 मिनट भी बंद नहीं रह सका जहां उन्हें 11 साल तक एकांत कारावास में बंद रखा गया था. मैंने #वीरसावरकर के अद्वितीय धैर्य की कल्पना की, जिन्होंने कारावास की क्रूरता और अमानवीय परिस्थितियों को सहन किया और फिर भी सशस्त्र क्रांति का निर्माण और प्रेरणा देने में कामयाब रहे. उनकी दृढ़ता और योगदान अतुलनीय है इसलिए दशकों से भारत विरोधी ताकतें आज भी उन्हें बदनाम करती रहती हैं. नमन.”

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